खेलना जरूरी बच्चों के स्वास्थ्य के लिए

खेलों का अपना ही महत्त्व है। खेलों से स्फूर्ति आती है और बच्चों की कार्य क्षमता बढ़ती है। जब बच्चे खेलते-कूदते हैं तो उनका विकास भी सही गति से होता है। खेल-कूद न करने वाले व एक ही स्थान पर हमेशा डटे रहने वाले बच्चे काफी मोटे व आलसी बन जाते हैं। उनकी चर्बी बढ़ जाती है।



खेल-कूद से बच्चों के शरीर के अंग-प्रत्यंग जयादा सक्रिय व लचीले रहते हैं। इससे उन्हें समय पर भूख लगती है व अच्छी नींद आती है। वे समय से जाग सकते हैं व अपने काम निपटा सकते हैं। पर्याप्त खेलकूद का मौका न पाने वाले बच्चों में हड्डियों की कमजोरी व दर्द की शिकायत भी देखी जा सकती है। पर्याप्त खेल-कूद बच्चों की मांसपेशियों व रक्तसंचालन को दुरूस्त बनाए रखता है।


खेल-कूद का पर्याप्त मौका पाने वाले बच्चों का मानसिक विकास भी तेज गति से होता है। खेल में व्यस्त रहकर वे तनाव से काफी दूर हो जाते हैं। इससे वे कायर व अवसादग्रस्त हो जाते हैं। खेल-कूद में भाग लेने वाले बच्चे दिमागी ताजगी के धनी होते हैं और उनमें पढ़ने-लिखने की क्षमता का विकास होता है।


खेलने-कूदने से बच्चों का सामाजिक संसर्ग भी मजबूत रहता है। खेल का मैदान एक ऐसी जगह होता है, जहां हर वर्ग व हर तबके के बच्चे खेलने के लिए आते हैं। सबसे मिल-जुलकर खेलने वाले बच्चे समाज को समझते हैं। वे अपनी जिम्मेदारी निर्धारित करते हैं। खेलकूद के दौरान भी बच्चे स्कूल की तरह अपने प्रिय मित्रा को ढंूढ पाते हैं और उनके साथ सामंजस्य बैठा पाते हैं। वैसे भी बच्चों के लिए हमउम्र बच्चों के साथ नियमित समय गुजारना रोमांचक भी होता है।



खेलने-कूदने से बचचों में सामाजिक अनुशासन भी पैदा होता है। बच्चे खुद निर्धारित करने लगते हैं कि उन्हें क्या व कितना खेलना चाहिए। धीरे-धीरे वे खेल की पूरी महत्ता को समझने लगते हैं। फिर खेल-कूद उनके लिए मार-पीट व हंगामे की चीज नहीं रह जाती बल्कि रोजमर्रा की जरूरत बन जाती है। 


बच्चों के लिए निश्चय ही खेल-कूद का समय निर्धारित होना बहुत जरूरी है। जब स्कूल चलते हों तो स्कूल से लौटने के बाद शाम को उसे डेढ़ दो घंटों का समय तो खेल-कूद के लिए मिलना ही चाहिए। गर्मियों की छुट्टियों में सुबह छ: बजे से सात बजे तक का वक्त खेल-कूद के लिए उपयुक्त होता है।


शाम का खेल भी नियमित होना चाहिए। यह भी ठीक नहीं कि बच्चा खेलने के लिए निकले और किसी कोने में दुबककर लूडो या कैरम खेलने लगे। बच्चों के खेल-कूद का अर्थ व्यायाम से ही है। क्रिकेट, फुटबाल साइकिलिंग इत्यादि खेल बच्चोंं के लिए आदर्श खेल हैंै।



वैसे भी खेल-कूद बच्चों की उम्र पर निर्भर करता है। तीन साल  की उम्र तक तो बच्चे घर में रहना व दादा-दादी, मां पिता व भाई-बहन के साथ खेलना ही पसंद करते हैं। पांच-छ: साल तक के बच्चों को साइकिल चलाना, हमउम्र बच्चों के साथ दौड़-धूप करना खूब भाता है। इससे ऊपर के बच्चों को क्रिकेट, फुटबाल वगैरह भाते हैं।


अभी ऐसा वक्त आ गया है कि बच्चों में खेलकूद के प्रति एक तरह की उदासीनता घर कर रही है और उन्हें कप्यूटर या टी. वी. के पर्दे से चिपके रहना अधिक अच्छा लगता है लेकिन इससे बच्चों का मनोरंजन कम होता है और उनके मस्तिष्क पर दबाव ज्यादा पड़ता है, इसलिए माता पिता व बड़ों का यह फर्ज बनता है कि बच्चों को नियमित खेल-कूद के लिए प्रोत्साहित करें कंप्यूटर और व टी. वी. से उनकी दूरी बनाए रखें।


माता-पिता यह भी हमेशा ध्यान में रखें कि बच्चों को कापी-किताबों में खपा देना महंगा पड़ सकता है क्योंकि दिमागी और शारीरिक तौर पर बराबर दौड़ लगाने में ही खुशी का खजाना छुपा है।