बच्चे की टेढ़ी टांगे नजर अंदाज न करें


राजेश शर्मा
हर मां बाप का सपना होता है कि वे अपने बच्चे को सामान्य रूप से दौड़ता-भागता एवं बढ़ते हुए देखें पर क्या हर मां-बाप का यह सपना पूरा हो पाता है? कहीं आप उनमें से एक तो नहीं हैं, जो अपने बच्चे की टेढ़ी होती टांगों को लेकर परेशान हैं?
यदि आपका बच्चा छः साल से कम आयु का है तो आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। यूं तो प्रत्येक माता-पिता इस बात का विशेष ख्याल रखते हैं कि कहीं उनका बच्चा दूसरे बच्चों की तुलना में मानसिक या शारीरिक रूप से पीछे तो नहीं है। ऐसे में अगर वे अपने बच्चे की टांगों को टेढ़ा या असामान्य देखें तो उनका चिंतित होना बहुत ही सामान्य सी बात है लेकिन बच्चे की इस परेशानी को सही तरह से समझने के लिए इसकी पूरी जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है।
डा. सुभाष शल्या, वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ, दिल्ली के अनुसार मां के गर्भ से लेकर जन्म तक तथा जन्म से लेकर बड़े होने तक हरेक मानव को एक निश्चित प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। बच्चे के जन्म से लेकर दो साल तक टांगों का वक्राकार होना आम बात है जिसमें बच्चे के खड़े होने या लेटने पर दोनों पंजों के मिलने पर भी घुटनों के बीच में जगह मौजूद होती है। इस अवस्था को डाक्टरी भाषा में ‘फिजियोलोजिकल जैनू वैरम’ अथवा ‘बो लैग्स’ कहा जाता है। इस प्रक्रिया का अगला पड़ाव 1) से 2) साल तक होता है जिसमें टांगें बिल्कुल सीधी हो जाती हैं और बच्चा सामान्य हो जाता है।
4 साल की उम्र तक आते आते यही प्रक्रिया उल्टी हो जाती है और बच्चे के लेटने या खड़े होने पर दोनों घुटनों के मिलाने से पांव की एड़ियों के बीच खाली स्थान बच जाता है व घुटने आपस में टकराते हैं जिसे ‘फिजियोलोजिकल जेनू वैल्गम’ अथवा ‘नौक नीज’ कहते हैं। इसमें चितिंत होने की कोई बात नहीं, अगर यह सब अपने नियमित समय से होता है क्योंकि यह सभी बढ़ने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। धीरे-धीरे 6-7 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते टांगें पूर्णतः सीधी हो जातीे हैं अर्थात सीधे खड़े होने पर दोनों टांगें सीधी हो जाती हैं तथा घुटने व एड़ी सट कर मिलती हैं।
डाॅ. शल्या के अनुसार यह प्रक्रिया सामान्य शारीरिक विकास का हिस्सा है तथा अधिकतर बच्चों में पाया जाता है किन्तु अगर आपके बच्चे की टांगें 7 वर्ष की आयु के पश्चात भी टेढ़ी हैं, उनकी विकृति (टेढ़ापन) दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, बच्चे की लम्बाई कम है या फिर टेढ़ापन एक ही पांव में है, इन सभी स्थितियों में से किसी एक की भी मौजूदगी पर माता-पिता को निश्चित रूप से कुशल हड्डीरोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि समय रहते उनका सही इलाज किया जा सके।
डाॅ. सुभाष शल्या के अनुसार टांगों का टेढ़ा होना कई कारणों से हो सकता है जैसे कि हड्डी के दोनों सिरों पर मौजूद ‘ग्रोथ प्लेट’ की असामान्यता जिससे हड्डियों की सामान्य वृद्धि में गड़बड़ी हो जाती है और हड्डी टेढ़ी हो जाती है। इसके अतिरिक्त गुर्दों की बीमारियां, हड्डी में इंफेक्शन, आस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा (हड्डियों का बार-बार फ्रेक्चर होना और ठीक ढंग से न जुड़ना) तथा आनुवांशिक डिस्पलेसिया भी इसके कारण हो सकते हैं किन्तु बच्चों में पाये जाना वाला रोग ‘रिकेट्स’ कई बार टेढ़ी टांगों के लिये अधिक जिम्मेदार है। रिकेट्स में मूलतः शरीर में कैल्शियम व विटामिन डी की कमी के कारण हड्डियां कमजोर होकर विकृत हो जाती हैं।
ऐसी स्थिति में बच्चे की टांगों को नजरअंदाज करना भविष्य में बहुत बड़ी भूल साबित हो सकती है। टांग टेढ़ी होने के कारण चाल खराब हो सकती है, पूरी टांग का अलाइनमेन्ट व संतुलन बिगड़ जाता है तथा घुटने पर असामान्य जोर पड़ने से जोड़ों की आर्थराइटिस समय से पहले होने की संभावना बढ़ जाती है जो सामान्यतः 40-45 वर्ष की आयु के पश्चात् होती है। कम उम्र में आर्थराइटिस होने से घुटने के जोड़ के बीच पाई जाने वाली कार्टिलेज जल्दी खत्म हो सकती है जिसे रोकने के लिए शल्य चिकित्सा का सहारा लेना पड़ता है। टेढ़ी टांग के कारण रीढ़ की हड्डी पर असामान्य जोर पड़ने से वह भी टेढ़ी हो जाती है जिसे ‘स्कोलियोसिस’ कहते हैं जो देखने में बहुत भद्दा लगता है।
ऐसे बच्चों का भविष्य सुधारने हेतु विकलांगता शल्य चिकित्सा विशेषज्ञ डाॅ. शल्या बताते हैं कि यदि समय पर बच्चे का इलाज शुरू कर दिया जाये तो न केवल टांगों को सीधा किया जा सकता है बल्कि भविष्य में होने वाली अनेक परेशानियों से बचा जा सकता है।
कई बार टांगें सीधी करने के लिए आपरेशन भी करना पड़ता है। आपरेशन करने से पहले अनेक बातों का ध्यान रखना पड़ता है-जैसे यदि टांगें बहुत टेढ़ी हैं, हालत ज्यादा बिगड़ी हुई है, टांगों का टेढ़ापन 5 साल की उम्र के बाद हुआ-जिन्हें डाॅ. शल्या बहुत ही अच्छी तरह से परख लेते हैं।
इलाज शुरू करने से पूर्व बीमारी के सही कारण का पता लगाया जा सकता है जिसके लिए टांगों का विशेष एक्स-रे और खून की जांच आदि की जाती है। सही कारण पता लगने पर उसके अनुसार इलाज शुरू किया जाता है। किस मरीज के लिए किस चिकित्सा प्रणाली को इस्तेमाल किया जाए, यह कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कि मरीज की उम्र, टेढ़ा होने का कारण, टेढ़ापन की तीव्रता की गम्भीरता।
वे मरीज जिनमें निदान कम उम्र में हो जाता है, डाॅ. शल्या के अनुसार उन्हें बिना शल्य चिकित्सा का सहारा लिए ही ठीक किया जाता है क्योंकि उनकी हड्डी बढ़ने वाली उम्र होती है। इसके लिए विशेष दवाएं दी जाती हैं तथा विशेष स्पिलिन्ट, ब्रेस तथा जूतों के बदलाव को इस्तेमाल करके, घुटने के दबाव वाले हिस्से से दबाव कम किया जाता है और घुटने को सही स्थिति में लम्बे समय तक रखा जाता है ताकि उस तकनीक से हड्डी सीधी हो सके। इन सबके साथ-साथ फिजियोथेरेपी का भी बहुत महत्व है परन्तु जो मरीज अधिक उम्र के होते हैं, उनमें विशेष शल्य चिकित्सा का उपयोग किया जाता है।
कई खास बीमारियां हैं जिनसे पीड़ित रोगियों में शल्य चिकित्सा करने से उनकी टांगों की हालत और बिगड़ सकती है। इन बीमारियों में मुख्य हैं हड्डी में संक्रमण, हठी रिकेट्स और ओस्टियोजेनिस इम्परफेक्तटा। इस समस्या के मरीज को छुटकारा दिलाने के लिए डाॅ. शल्या (फोन-9810124433) एक विशेष प्रकार की चिकित्सा ‘इलिजारोव रिंगफिक्सेटर’ प्रणाली इस्तेमाल करते हैं जिसमें बिना अधिक चीरफाड़ के हड्डियों को सीधा किया जाता है, इसलिए इसे ‘रक्त रहित’ चिकित्सा भी कहते हैं। विश्व आर्थोपेडिक एसोसियेशन ने भी इस प्रणाली को सबसे सुरक्षित और असरदार घोषित किया है।
डाॅ. शल्या ने इस प्रणाली द्वारा सैंकड़ों ऐसे मरीजों को टेढ़ी टांगों से निजात दिलाकर उन्हें विकलांग होने से बचाया है। अब यह आपके हाथ में है, कि आप अपने बच्चे को कैसा भविष्य प्रदान करना चाहते हैं?