आज की बेटियाँ सब कुछ कर सकती है : शैला खान

बेटियों को आज भी यहां पराया धन माना जाता है मगर बेटियों में छिपी प्रतिभाओं को यदि मौका मिले तो वे दिखा देती हैं कि वे अपनी पहचान बनाने में किसी से कम नहीं हैं ऐसे ही एक जानी-मानी शख्सियत हैं - एडवोकेट शैला खान जिन्होंने बहुत कम समय में अपनी पहचान को मुकाम दिया और आज वे फैशन इण्डस्ट्री में जाना-माना नाम हैं। प्रस्तुत हैं 'आपकी सेहत' पत्रिका के संपादक तरूण कुमार से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश :-



शैला खान जी  सबसे पहले आपसे हमारा सवाल है कि आपने अपने कैरियर की शुरूआत कहां से की?


मेरी कैरियर की शुरूआत मैं निरंतर पढ़ाई के साथ चलती रही, जब मैं 12वीं कक्षा में थी तो मेरी शादी हो गयी, मगर मेरे पति ने मेरी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। जिस कारण मैंने पढ़ाई सुचारू रूप से जारी रखी, मैंने बी.ए., एम.ए.इंग्लिश, एलएलबी, पीसीएस-जे की पढ़ाई की, वह अलग बात रही कि पीसीएस-जे के एग्जाम में पास नहीं कर पाई और मैं जज नहीं बन पाई, फिर मैंने म्यूनसीपल काउंसलर का चुनाव लड़ा और मैंने पहली ही बार में चुनाव जीत लिया
यहीं से शुरू हुआ मेरा और मेरे पति का सोशल एक्टिविस्ट का दौर, जहां से हमने अपने शहर रामपुर जोकि उत्तर प्रदेश में है। लोगों के लिए दिन-रात कार्य किया, उनके राशन कार्ड, पेंशन खाते,  मा.काशीराम योजना के आवास उन्हें दिलाए, उनकी आंखों की खुशी ने सेवा के भाव को और मजबूत कर दिया। 


जहां से एक सोच का जन्म हुआ कि दबे कुचले और दलित वर्ग को उठाना है और सर्वहारा वर्ग की मदद करना है। बसपा सुप्रीमो के आदर्शों ने लक्ष्य प्राप्त करने और निरंतर आगे चलने के लिए प्रोत्साहित किया, दलित परिवार में जन्मी एक महिला ने उत्तर प्रदेश में कुशल शासन कर पाँच बार मुख्यमंत्री बन महिलाओं को गौरवान्वित किया और मेरे मन में कौतूहल पैदा कर दिया, निरंतर आगे बढ़ने के लिए जहां हर रास्ते पर मेरे पति मेरा हाथ थामे रहे, यही मेरे कैरियर की शुरूआत थी, फिर मैंने नगर पालिका अध्यक्षा का चुनाव बसपा के टिकट से लड़ा समाजवादी का शहर में मजबूत वर्चस्व होने पर भी लोगों ने पहली बार में मेरी ऐतिहासिक प्रेम और वोट दिया परंतु राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार होकर अच्छा चुनाव होने पर भी चुनाव में रामपुर से नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव हार गई।



शैला खान जी आपकी प्राथमिक शिक्षा कहां से हुई और किस मोड़ पर अपने जीवन के लक्ष्य तय किए।
मेरी प्राथमिक शिक्षा उत्तर प्रदेश धामपुर डिस्ट्रिक्ट बिजनौर सेंट मेरिज से हुई, मेरे पिताजी सरकारी नौकरी में विद्युत विभाग के इंजीनियर थे, जिस कारण ट्रांसफर होने से हम लोगों को जगह-जगह पलायन करना पड़ता था। प्रारंभिक शिक्षा लेकर धामपुर से रामपुर उत्तर प्रदेश आ गए, ग्रीनवुड से पढ़ाई की और दसवीं सीबीएसई बोर्ड प्रथम श्रेणी से अच्छे अंकों में पास की। जीवन का लक्ष्य एक बार नहीं तय किया जाता, बार-बार तय किया- कार्य कुशल, हार्डवर्क, लक्ष्य के प्रति सजग - उसके बाद कई बार मिली असफलताओं ने तोड़कर रख दिया, मगर अपनी आध्यात्मिक शक्ति पर यकीन दृढ निश्चय अडिग रहना जैसी विचारधारा ने मुझे निरंतर प्रयास करने के लिए तत्पर रखा। वकील की डिग्री लेकर और समाजसेवी नेता बनकर बनकर संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई, अभी और कुछ पाने की लालसा मन में निरंतर चलती रही। जिसने कई बार रास्ते बदले और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए एडीआईजी किया, वकील बनकर बहुत ज्यादा मेहनत करने पर भी पीसीएस ना पास कर पाना और जज ना बन पाना - आत्मा को झकझोर दिया। रास्ता बदला समाज सेविका बनकर चुनाव लड़ा म्यूनिसीपल काउंसलर का चुनाव जीतकर, परंतु 2017 में नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव हार गए। उसी दौरान पाया की रामपुर एक कलात्मक शहर है, यहां पर एक बेहतरीन कला का खजाना छुपा है जिसे किसी राजनेता ने नहीं सराहा  बड़ा तबका अशिक्षित होने के कारण सरकार से आई स्कीमों से भी लाभान्वित रहे, फिर लाइन बदली अपने अंदर छुपे हुए फैशन डिजाइनर को जगाया, जिसका मूल कारण दबका जरदोजी, चटापटी-पटापटी के कारीगरों की मदद करने के भाव से बुटीक की शुरूआत की। 
इन कारीगरों से दबका जरदोजी के गरारे तैयार कराए, जिन्होंने दुनिया भर में धूम मचाई, जिससे मेरे रामपुर के कारीगरों को काम मिला मेरे द्वारा आर्डर लाए गए और उनको काम दिया गया। मेरी व्यस्ता भी बढ़ गई, मगर मेरी माता जी कहती हैं कि जिस कार्य को करो तो अपना पूरा हंड्रेड परसेंट दो, कार्य के प्रति निष्ठावान रहो, उस कार्य को सम्मान दो, चुनौतियों का अधिक अधिक मुकाबला करो और उस काम को नंबर वन के पायदान पर पहुंचाओ, यही विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए मैंने संकल्प लिया कि ब्राइडल ड्रेसेस डिजाइनर ड्रेसेस के कार्य को नंबर वन के पायदान पर पहुंचाऊंगी और रामपुर की कला और रामपुर की कारीगरों को दुनिया में पहचान दिलवाकर रहूंगी। जिसे आगे बढ़ाने के लिए मैंने रामपुर के गरारे और फेरी वर्ल्ड कलेक्शन नामक पेजेस गूगल इंस्टाग्राम, फेसबुक पर पेज बनायें, जहां से लोग मेरी कार्यकुशलता को सरहाते हैं और दुनिया भर के रिव्यूज मेरा आत्मविश्वास बढ़ा देते हैं, यह कहना ठीक होगा कि आगे पढ़-लिखकर सफलता न मिल पाना तो हो सकता है कि छुपा हुआ हुनर व्यक्ति की पहचान बनवा दे।



शैला खान जी आपकी सफलता और और आप जिस मुकाम पर हैं उसे पाने में आपने क्या क्या किया और मुख्य भूमिका किसकी रही।


बच्चे के जीवन पर उसकी माता के विचारों का बहुत प्रभाव रहता है और बेटी बहुत कुछ अपनी मां की परछाई होती हैं, मेरी माता जी बहुत पढ़ी-लिखी थीं - एमए, एमसीसी उस जमाने में जब लोग अपनी बेटी को घर से बाहर तक नहीं भेजते थे, एनसीसी क्रेडिट, पूरे हिंदुस्तान घूमी और सशक्त आदर्शों की महिला रही परंतु आॅर्थोडॉक्स मुस्लिम फैमिली विचारधारा ने उन्हें ऊंचे अवसर पाने से रोक दिया, माता सीओ सिटी बनते-बनते रह गईं, उन्होंने मुझे हमेशा कॉन्फिडेंस जगाया कि बेटियां भी सब कुछ कर सकती हैं।



12वीं के बाद शादी हो जाने के बाद निरंतर प्रयास करती रही थी अपनी पढ़ाई पूरी करूं और मेरे बच्चे पाल कर उन्होंने पूरा सहयोग दिया मगर शादी के बाद का असली सहयोग पति का होता है, उन्होंने मेरी क्षमताओं को पहचाना और कभी पढ़ाई पर प्रतिबंध नहीं लगाया बल्कि जितना सहयोग वे और उनका परिवार कर सकता था उन्होंने किया। उन्हें भी जब लगने लगा कि मेरी क्षमता है कि मैं जज बन सकती हूं पीसीएस का एग्जाम देने के लिए प्रोत्साहित किया, सच्ची लगन और पूरे पारिवारिक सपोर्ट के बाद भी मैं क्वालीफाई ना कर सकी, जिस कारण डिप्रेशन में आ गई। डिप्रेशन से उबरने में उन्हें मेरा पूरा सहयोग दिया, मुझमें विश्वास जगाया, मेरा ध्यान दूसरी तरफ करने के लिए उन्होंने काउंसलर का चुनाव लड़ाया  वहीं से शुरू हुआ मेरा दूसरों के लिए जीने का सफर, घर से बाहर निकल कर पाया, रामपुर जैसे छोटे शहर में बहुत लाचारी, गरीबी, अशिक्षा है।
मैंने और मेरे पति ने हर तरह से पूरे शहर का सहयोग किया। पेंशन बनवाकर, राशन कार्ड बनवाकर, खाता खुलवाकर माननीय काशीराम योजना के घर दिलवाकर मुख्य भूमिका में मेरा पूरा परिवार मेरे लिए बहुत सहयोगी है मैं धन्य हूं ऐसी माता और पति पाकर।



शैला  खान जी आप जिस मुकाम पर हैं और आप लोग आप को जानते हैं और यह देख कर आपको कैसा महसूस होता है?
बीएसपी से शहर का बड़ा चुनाव लड़कर आज शहर ही नहीं आसपास के कस्बों और गांव भी जानने लगे हैं, अच्छा लगता है परि कथा जैसा लगता है, लेकिन संतुष्टि नहीं मिली है, अभी इस बेटी को पूरे भारत में पहचान करवानी है बल्कि भारत से बाहर भी हमारे रामपुर शहर में बहुत बेहतरीन हैंड वर्क होता है और ट्रेडिशनल ड्रेसेस का माना जाता है, नवाबी सभ्यता होने के कारण बेहतरीन गरारे-शरारे तबका जरदोसी पटापटी-चटापटी के गरारे यहां बनते हैं, मगर यह कला  लुप्त होती जा रही है, जहां तक ((कारचोब)) कार्य करने वाले रिक्शा चलाने पर विवश हो चुके हैं। काम के अभाव होने के कारण मगर एक फैशन डिजाइनर की भूमिका निभाकर में आॅनलाइन दुनियाभर से आॅर्डर लेकर इन कारीगरों को काम दे रही हूं अभी बहुत आगे जाना है इस कला को पूरी दुनिया में लोहा मनवाना है इस शहर के कारीगरों को आत्मनिर्भर बनाना है।



शैला जी आपको आपके परिवार में सबसे ज्यादा सपोर्ट और सहयोग किन से मिला?


कहा नहीं जा सकता वैसे शादी के बाद पत्नी जो भी कुछ करती है, उसका पूरा श्रेय उसके पति को दिया जाना चाहिए मगर मेरे पूरे परिवार ने मेरे माता-पिता, मेरा पूरा ससुराल पक्ष मुझे आगे बढ़ाने में तत्पर रहा, मेरे चुनाव में मेरे भतीजे-भांजो का सहयोग भी नकारा नहीं जा सकता।


शैला जी आपको अभी तक कौन-कौन से सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है?


वैसे तो बड़े सम्मान नहीं मिले हैं मगर हालफिलाल में कई संस्थाओं ने कोरोना वायरस वॉरियर्स के सम्मान से नवाजा, जिससे हमने करोना काल में ज्यादा से ज्यादा लोगों को राशन सामग्री उपलब्ध कराई, यात्रियों को पैदल चलने वाले यात्रियों को पानी फल मुहैया कराए, जोकि जो कार्य निरंतर 3 महीने तक चलता रहा। अक्सर कॉलेज स्कूल और फैशन, महिलाओं के उत्थान, के लिए कई बार सम्मानित किया गया।कई सारी संस्थाओं से मुझे जोड़ा गया और सम्मान मिला


शैला जी आपके जीवन का ऐसा रोल मॉडल कौन है तथा आप किस फिल्म स्टार की तरह बनना चाहती हैं?


मेरे जीवन का रोल मॉडल है श्रीमती इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा ,माननीय बहन कुमारी  मायावती जी जो दलित परिवार में जन्म लेने के बाद भी उत्तर प्रदेश की 5 बार मुख्यमंत्री बनी और सफल शासक के तौर पर पूरे महिला समाज को गौरवान्वित किया। 
शैला जी अभी तक आपने जितनी भी कार्य किए हैं उनमें आपके लिए सबसे बेस्ट और सबसे अच्छा कार्य और अनुभव कौन सा रहा है।


वैसे तो सोशल एक्टिविस्ट के रूप में निरंतर सेवा भावना से काम किया और सभी कामों से संतुष्ट हैं, चाहे पेंशन हो, खाते हों, राशन कार्ड हों, करोना काल में मदद हों, मगर सबसे ज्यादा संतुष्टि सभासद बनकर लोगों को माननीय कांशीराम योजना के आवासों का आबंटन कराकर मिली, क्योंकि घर इंसान का बहुत बड़ा सपना होता है और गरीबों का यह सपना पूरा करना एक बहुत बड़ी बात है, जोकि ऊपर वाले ने हमारे हाथों से कराया और कई बार तो लोगों ने हमें रो-रोकर आशीर्वाद दिया।


 शैला जी आप अपने आने वाली पीढ़ी को कोई ऐसा संदेश देना चाहेंगे जिससे वह प्रेरित हो सकें।



जी बिल्कुल! मैं अपनी बेटियों से यह कहना चाहूंगी कि खूब मन लगाकर पढे। क्योंकि पढ़ाई ही वह रास्ता है जिससे आगे जाने का रास्ता मिलता है, सम्मान पाने का, आत्मविश्वास पैदा करने का रास्ता है लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपने हुनर को अनदेखा ना करें, जहां पर पढ़-लिखकर वकील बनकर मैं जज ना बन सकी मगर आज फैशन डिजाइनिंग में खूब नाम कमा रही हूं। कढ़ाई सिलाई हमेशा से मेरा छुपा हुआ हुनर रहा, अच्छे कपड़े पहनने की चाह, भीड़ से अलग दिखने की चाह, हमेशा बेहतरीन कपड़े डिजाइन करवाएं और कहीं ना कहीं आत्मनिर्भर भी बनी, आज बहुत सारे कारीगरों को रोजगार दिलाया, यह कहना चाहूंगी कि अगर उपरवाला एक दरवाजा बंद कर देता है तो दूसरा दरवाजा जरूर खटखटाना चाहिए, हो सकता है वो बेहतर अपॉर्चुनिटी हो।