युवा पीढ़ी हेतु स्वस्थ जीवनशैली


आज समस्त संसार में मानसिक रोगियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। प्रत्येक व्यक्ति निराश, शांत, चितिंत, थका-थका सा दिखाई देता है। इन मानसिक रोगियों में सबसे बड़ी संख्या है आज के नवयुवक और नवयुवतियों की। 



पढ़ाई-लिखाई से लेकर कैरियर बनाने तक की चिंता से चिंतित आज के युवा वर्ग के मुखमंडल की कांति लुप्त-सी होती जा रही है। चिंता के झंझावातों से टकराकर उनमें अनेक बीमारियां उत्पन्न होने लग जाती हैं, फलस्वरूप वे हाई ब्लडप्रेशर, लो ब्लडप्रेशर, नपुंसकता, स्वप्नदोष आदि के शिकार हो जाते हैं।



यूं तो आजकल हताशा और निराशा का सामना लोगों को पग पग पर ही करना पड़ता है परन्तु नवयुवक जिनको अपने कैरियर निर्माण की चिंता हमेशा रहती है, वे दिन-प्रतिदिन अपने स्वास्थ्य को बर्बाद करते रहते हैं। कैरियर निर्माण हर अवस्था में आवश्यक है परन्तु स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही अच्छी नहीं होती।



प्रायः नवयुवक प्रातःकाल सूर्योदय के बाद भी बिस्तर पर सोये रहते हैं। सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होने वाले युवा दिनभर ताजगी अनुभव करते हैं। अतः निराशा से बचने के लिए सूर्योदय से पूर्व उठने की आदत को डालना चाहिए।
प्रातःकाल का भ्रमण शरीर के लिए अति उत्तम होता है। कम से कम दो किलोमीटर तक प्रतिदिन घूमने से जहां शरीर स्वस्थ रहता है, वहीं मस्तिष्क को स्फूर्ति भी मिलती है। नेत्रा की ज्योति के लिए तो प्रातःकाल का भ्रमण संजीवनी के समान होता है। प्रतिदिन थोड़ी देर नंगे पांव घास पर टहलने वालों की आंखों पर चश्मा जल्दी नहीं चढ़ता है।



व्यायाम एवं योगाभ्यास के साथ ही शरीर में तेल मालिश करने वाले के पास से बीमारियां सौ कोस दूर भागी रहती हैं। अखाड़े में जाकर कुश्ती का अभ्यास करना, सूर्य नमस्कार, पद्मासन, त्रिकोण आसन, पश्चिमोतानासन, शवासन आदि का अभ्यास नित्य करने से जहां देह की सुन्दरता बढ़ती है, अवयव पुष्ट होते हैं, वहीं स्मरण शक्ति भी तीव्र होती है।




आधुनिकता के चक्कर मंे पड़ कर आज का युवा वर्ग तेल की मालिश से कटता जा रहा है। तेल की मालिश करने से शरीर के अंग-प्रत्यंग की थकान मिट जाती है, अवयव पुष्ट होते हैं क्योंकि उन्हें तेल द्वारा पोषण प्राप्त होता है। नवयुवतियां प्रायः छोटे स्तनों के कारण अपने अंदर हीन भावनाओं को पाल लेती हैं। अगर नियमित रूप से व्यायाम व तेल मालिश की जाए तो इस प्रकार की हीन भावना मन में पनपने ही नहीं पाएगी।



खान-पान पर नियंत्राण करके युवा वर्ग अपने मस्तिष्क को प्रखर कर सकते हैं। प्रातःकाल उठते ही चाय पीने की आदत का त्याग कर देना चाहिए। अधिक खट्टे-मीठे पदार्थों का भक्षण, फास्ट फूड की आदतों से ग्रसित रहने पर युवावस्था में ही कब्ज की शिकायत घर कर लेती है। कब्ज के कारण ही उदर रोग, स्वप्नदोष, श्वेत प्रदर, जाॅन्डिस आदि होते हैं जो युवावस्था की कान्ति के लिए ग्रहण का रूप धारण कर लेते हैं।



प्रातःकाल अंकुरित अन्न को नाश्ते में लेते रहने से कब्ज की शिकायत दूर होती है। प्रतिदिन प्रातःकाल एक गिलास गाय का दूध या संतरे के रस को पीने वाले युवा शारीरिक व मानसिक शक्तियों को बनाये रखने में सक्षम होते हैं।
नृत्य एवं संगीत एक ऐसी विधा है जो शरीर एवं मन दोनों को ही तनाव से मुक्त रखती है। नृत्य एवं संगीत केे लिए भी नियमित रूप से कुछ समय निकालना चाहिए।



युवाओं को प्रदूषणयुक्त वातावरण से जहां तक संभव हो, दूर रहना चाहिए क्योंकि प्रदूषण शरीर के साथ-साथ मन को भी प्रदूषित कर देता है। आजकल अन्य प्रदूषणों के साथ ही विचार प्रदूषण की परिधि बेतहाशा बढ़ती जा रही है।
वैचारिक प्रदूषण ही हत्या, बलात्कार आदि को जन्म देता है। युवाशक्ति की ऊर्जा इस प्रदूषण की गिरफ्त में फंसकर आतंकवादी बनती जा रही है। अतः विचार प्रदूषण से मुक्त होकर ही कैरियर के निर्माण के प्रति सचेष्ट रहना चाहिए।