मनुष्य को अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी खुद लेनी चाहिये : डॉ.रजनी खेडवाल (चिकित्सा अधीक्षक) स्वामी दयानंद हॉस्पीटल


आज जहां देखो सेहत की समस्या विकट बनी हुई मगर दिल्ली एनसीआर के अच्छी अस्पतालों के उच्च पदों पर आसीन अच्छी शख्सियत वाले लोग दिल्ली ही नहीं पूरे देश की सेहत पर नजर रखकर - जनता स्वस्थ रहेगी तो देश स्वस्थ रहेगा की मुहिम को सफल बनाये हुये हैं। पूर्वी दिल्ली के एक बड़े अस्पताल स्वामी दयानंद अस्पताल जिसे हम जनरल हास्पीटल के नाम से भी जानते हैं कि चिकित्सा अधीक्षक डॉ.रजनी खेडवाल से मुलाकात की और उनसे आपकी सेहत के संपादक तरूण कुमार निमेष, सीनियर संपादक राजेश कुन्दरा, उपसंपादक गौरव जैन, और सीनियर रिपोर्टर डॉ.कमल गुरनामी ने साक्षात्कार लिया। बातचीत के कुछ प्रमुख अंश :-


आप स्वामी दयानंद अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक हैं। ऐसी बड़ी जिम्मेदारी को संभालते हुए आप कैसा महसूस करती हैं?


जिम्मेदारी को संभालने में मुझे बेहद खुशी होती है और मैं अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ निभाती भी हूँ। मेरी यही कोशिश रहती है कि जो भी मरीज मेरे अस्पताल में आये पूरी तरह से संतुष्ट और रोग मुक्त होकर जाये।



डॉ. रजनी जी आपने अपनी शिक्षा कहाँ से प्राप्त की और यहां तक का सफर हमारे पाठकों को बतायें?


मैं राजस्थान के शहर अजमेर से सम्बंध रखती हूँ, वहीं के मिशनरी स्कूल में मेरी प्रारंभिक शिक्षा हुई, मैंने मिशनरी स्कूल में देखा कि वहां पर कितना समर्पण होता है टीचर्स और नन्स में। उनके द्वारा मुझे नैतिक मूल्यों का पाठ पढाया गया वो आज भी मेरे जीवन में काम आ रहा है। अपने काम को पूरी ईमानदारी व निष्ठा से करती हूँ और अपने नैतिक मूल्यों का कभी हनन नहीं होने दिया, नैतिक मूल्यों का जीवन में बहुत महत्व है। उसके बाद सैकेण्डरी एजुकेशन भी वहीं से की और जवाहर लाल मेडिकल कॉलेज  से एम.बी.बी.एस. और एम.डी. 1990 में किया। 2000 में मैंने एमसीडी ज्वाइन किया उससे पहले 10 साल मैंने दिल्ली सरकार सहित विभिन्न अस्पतालों में काम किया जिसमें रेड क्रास हास्पीटल भी शामिल है। 


दिल्ली सरकार से आपके अस्पताल का तालमेल कैसा है अक्सर सुनने में आता है कि दिल्ली सरकार और अस्पताल के डॉक्टरों में मतभेद चलता रहता है?


दिल्ली सरकार से तालमेल नहीं होने का सवाल ही नहीं है। दिल्ली में विभिन्न तरह के सरकारी अस्पताल हैं, कुछ सेंट्रल गवर्मेंट के, कुछ दिल्ली गवर्मेंट के, कुछ ईएसआई के, कुछ एमसीडी के, तो इनका कार्डिनेशन बनाना मुश्किल होता है। परन्तु हमें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती है, सभी का सहयोग मिलता है। जीटीबी (गुरूतेग बहादुर अस्पताल) अस्पताल का पूरा सहयोग मिला है। 



आपके द्वारा चलाई गयी मरीजों के लिए टोकन सिस्टम की मुहिम अब दिल्ली सरकार में कुछ अस्पतालों में भी शुरू कर दी गयी है, इसके बारे में बताईये?


ये क्यू मैनेजमेंट सिस्टम है, इस सिस्टम से पहले मरीजों को घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ता था। कुछ मरीज बच्चे, बूढ़े और गर्भवती महिलायें भी होती थीं, जोकि घंटों लाइन में खड़े रहते थे, ये सभी देखकर मुझे बेहद दुख होता था, इसीलिये मैंने ये सिस्टम बनाया और इसे शुरू किया। इसमें हमारे पास 4 (चार) विंडो हैं, दो टोकन वेंडिंग मशीनों से टोकन मिलते हैं, टोकन में विडों नम्बर और क्यू का नम्बर भी होता है, कौन से विंडो पर आपका कौन सा नम्बर है यह पर्ची में अंकित होता है। अब मरीजों को लाइन में खड़े होने की जरूरत नहीं है, वहां पर बैंच लगा दिये गये हैं, मरीज बैठकर अपना नम्बर आने का इंतजार कर सकते हैं। इससे मरीजों के समय का सदुपयोग हो जाता है, साथ ही खड़े होने की तकलीफ से वे बच जाते हैं। मैंने ये क्यू मैनेजमेंट सिस्टम फामेर्सी में शुरू किया था, अब हम इसे  नेत्र विभाग, अस्थि विभाग और अन्य विभागों में भी शुरू करने जा रहे हैं। 


डॉ. रजनी जी आज आप इस मुकाम पर हैं यहां पर पहुंचाने में आपका सहयोग किनका रहा?


मैं सारा श्रेय अपने माता-पिता को ही दूंगी क्योंकि हम तीन बहनें हैं और हम तीनों बहनें उच्च सरकारी पदों पर आसीन हैं। एक बहन अजमेर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है और सबसे छोटी बहन जयपुर में एसिस्टेंट कमिश्नर है। पढाई-लिखाई में उन्होंने पूरा सहयोग दिया, हमें कभी भी किसी प्रकार की कमी महसूस ही नहीं होने दी। 


डॉ. रजनी जी आप दशकों से लोगों की सेवा में लगी हैं। आपका सबसे अच्छा अनुभव क्या रहा?


मैं एक ऐनेसथेटिस्ट हूँ और मेरा ज्यादा काम आॅपरेशन थियेटर में ही रहता है। आॅपरेशन थियेटर के नाम से ही सभी को डर लगता है, सभी प्रार्थना करते हैं कि आॅपरेशन थियेटर से मरीज सही सलामत बाहर आ जायें। आॅपरेशन थियेटर में जब मरीज का आॅपरेशन हो जाता है और वो सही सलामत बाहर आ जाता है, पूरी तरह होश में आ जाता है तब बहुत संतुष्टि होती है।  हमारे द्वारा न जाने कितने ही जाने बचायी जाती हैं। जब एमरजेंसी आॅपरेशन होते हैं, ट्रोमा के मरीज, गर्भवती महिलायें में माँ और बच्चे दोनों की जानें बचानी होती हैं, तो ऐसे बहुत से अनुभव हैं जब हम जान बचाकर खुद पर गर्व महसूस करते हैं।



डॉ. रजनी जी आपके जीवन के रोल मॉडल कौन है तथा आप किनको अपना आदर्श मानती हैं?


मेरे शिक्षक मेरे रोल मॉडल हैं और रहेंगे, प्राइमरी स्कूल के शिक्षक, मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर थी वो मेरे रोल मॉडल हैं। मेडिकल कॉलेज में एक प्रोफेसर थीं डॉ.विजय लक्ष्मी जैन जो बहुत ही कर्त्तव्यनिष्ठ थीं, मैं सभी कठिन परिस्थितियों में उनको याद करती हूँ, कि वे किस तरह मरीज की जाने बचाती थीं, मैं उन्हीं के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश करती हूँ।


आप एक महिला हैं और इतने बड़े पद पर आसीन भी हैं तो आप किस प्रकार परिवार और काम में तामतेल बनाती हैं?


सामंजस्य मिला पाना बहुत कठिन होता है। जैसे-जैसे आप ऊँचे पद की ओर अग्रसर रहते हैं तो आपके कार्यस्थल की जिम्मेदारियाँ आपके ऊपर निरंतर बढ़ती चली जाती हैं इसीलिये हम परिवार को कम समय दे पाते हैं। लेकिन मेरी फिर भी पूरी कोशिश रहती है कि परिवार और काम में सामंजस्य बना सकूं।


अक्सर देखने और सुनने में आता है कि संसाधनों की कमी के चलते अस्पताल में छोटी बड़ी समस्यायें खड़ी हो जाती हैं तो आप इन समस्याओं को किस प्रकार फेस करती हैं?


जहाँ इतने सारे मरीज आयेंगे तो वहां पर समस्यायें तो आयेंगी ही, लेकिन फिर भी मेरी यही कोशिश रहती हैं कि समस्याओं का निदान करें, और सच बात तो यह है कि हम समस्याओं से सीखते भी हैं। यदि समस्यायें आयेंगी नहीं तो हम सोल्यूशन निकालेंगे कहाँ से, इन समस्याओं को मैं एक चैलेंज के रूप में लेती हूँ।



डॉ. रजनी जी आप आने वाली पीढ़ी को कोई ऐसा संदेश देना चाहेंगी जिनसे वह प्रेरित हो सके।


मैं ये कहना चाहूंगी कि, स्वस्थ समाज देश के लिए धरोहर है। जैसा कि हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी लिखा है कि - पहला सुख निरोगी काया - तो सबसे पहला है कि हमारा जो देश है उसमें सभी रोग मुक्त रहें, तभी हम आगे बढ़ सकेंगे। क्योंकि परिवार में एक भी इंसान बीमार हो जाता है तो उसका असर पूरे परिवार में पड़ता है। मनुष्य को अपने स्वास्थ्य के जिम्मेदारी खुद लेनी चाहिये कि मुझे स्वस्थ रहना है तो उसके लिए अपना लाइफ स्टाइल चेंज करना होगा, खानपान चेंज करना होगा और प्राइमरी स्कूल में स्वास्थ्य के बारे में कि आप अपने आपको किस प्रकार रोग मुक्त रख सकते हैं, ये बच्चों को पढ़ाना चाहिये।