एक स्वाभाविक प्रक्रिया है रजोनिवृत्ति


नारी जीवन में सबसे बड़े तीन बदलाव आते हैं। पहली बार जब महिला का मासिक धर्म प्रारम्भ होता है, दूसरी बार जब महिला मां बनती है और तीसरी बार जब महिला की रजोनिवृत्ति का समय आता है।


रजोनिवृत्ति का अर्थ है कि अब महिला मां नहीं बन सकती और उसके लिए बुढ़ापे की दहलीज में प्रवेश करने का संकेत होता है। इस अवस्था में शारीरिक, मानसिक, कई बदलाव आते हैं। यदि इन बदलावों को स्वाभाविक लिया जाये तो उस अवस्था पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। 


रजोनिवृत्ति का समय लगभग 40 से 50 वर्ष के बीच में होता है। रजोनिवृत्ति का अर्थ मासिक चक्र का बन्द होना होता है। महिलाओं के शरीर में 'इस्ट्रोजन' नाम का हार्मोन जब बनना बंद हो जाता है और डिम्बाशय की क्षमता भी समाप्त होनी शुरू हो जाती है। उम्र के साथ और भी कई कारण होते हैं रजोनिवृत्ति के जैसे-जलवायु, सन्तानोत्पत्ति, यौन जीवन, बीमारियां, दवाइयों का प्रभाव आदि। ये सब कारण महिला की रजोनिवृत्ति के समय को बदल देते हैं। जिन महिलाओं का मासिक चक्र नियमित रहता है, जिन महिलाओं ने बच्चों को स्तनपान करवाया होता है और जिन महिलाओं का यौन जीवन सुखमय रहा होता है, ऐसी महिलाओं की रजोनिवृत्ति देर से होती है। 


साधारणतः सभी महिलाएं 45 से 50 तक की आयु में रजोनिवृत्त हो जाती हैं। यदि 50 से भी अधिक आयु तक मासिक चक्र रहे तो डाॅक्टर से मेडिकल चैकअप करवाना चाहिए।


रजोनिवृत्ति के लक्षण:- मासिक धर्म की अनियमितता ही रजोनिवृत्ति का मुख्य कारण होता है। कभी-कभी माह में दो बार और कभी-कभी दो माह में एक बार मासिक धर्म होता है। धीरे-धीरे अन्तराल बढ़ता जाता है और कुछ समय पश्चात पूर्ण रूप से मासिक धर्म बंद हो जाता है। अधिकतर महिलाओं को ऐसे में संभोग के समय अधिक तकलीफ होती है क्योंकि योनि मार्ग अधिक सूखा पड़ जाता है।



कई महिलाओं को मासिक स्राव बहुत अधिक होता है और स्राव के साथ खून के बड़े-बड़े थक्के आते हैं। कुछ महिलाओं का रक्तस्राव कम होता चला जाता है। इन दिनों स्राव में अधिक बदबू आती है और असामान्य दर्द भी होता है। कई बार दो मासिक चक्र के बीच भी रक्त स्राव होता है। यदि इस प्रकार के लक्षणों में से अधिक लक्षण मिलते हों तो अपनी गाइनोकोलोजिट को मिल कर परामर्श लें।


आम तकलीफें:-


हार्मोन्स की असंतुलता के कारण रजोनिवृत्ति के समय और बाद में स्त्रियों को कई तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ता है। यदि इन तकलीफों के बारे में डाॅक्टर से पहले ही जानकारी ले लें तो इन तकलीफों पर आसानी से काबू पाया जा सकता हंै जैसे:-



  • कभी-कभी गर्मी लगने लगती है, पसीना आता है और एकदम से जाड़ा लगना शुरू हो जाता है।

  • स्वभाव में चिड़चिड़ापन, निराशा जोड़ों का दर्द, थकान तथा संभोग के प्रति अरूचि का होना भी आम बात है।

  • कुछ महिलाओं के जीवन में अधिक उथल पुथल होती है तो कुछ के जीवन में कम, इसलिए इस बात को लेकर अधिक चिंतित नहीं होना चाहिए न ही दूसरों से तुलना करनी चाहिए क्योंकि सब महिलाओं की परिस्थितियां भिन्न हो सकती हैं। 

  • रात्रि में पसीने का अधिक आना।

  • बार-बार पेशाब का आना। रोकने पर भी आवेग पर काबू न पा सकना, पेशाब में जलन का होना।

  • गर्मी और बेचैनी बार-बार महसूस करना। ऐसे में गर्म पेयों को नहीं लेना चाहिए और भारी वस्त्रों को नहीं पहनना चाहिए। 

  • हाॅट फ्लशिज का होना। इसमें कमर से ऊपर का भाग एकदम गर्म हो जाता है और कुछ समय बाद नार्मल हो जाता है।