उपवास यह भी जानिए


अगर आप डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हृदय रोग, पेप्टिक अल्सर या लिवर की गड़बड़ी की शिकार हैं तो एक दिन का उपवास करना भी आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। उपवास करने से किडनी व हार्ट को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती और उन पर अधिक स्ट्रेन पड़ता है। डायबिटीज के रोगी को उपवास करने से हाइपोग्लाइसीमिया यानी ब्लड शूगर में कमी हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है, इसलिए अस्वस्थता में भूलकर भी उपवास न करें।



अगर आप स्वस्थ हैं, तब भी उपवास थोड़ा सभल कर ही करें। इससे स्वास्थ्य संबंधी कई गड़बड़ियां पैदा हो सकती हैं। यदि आप निर्जल उपवास रखें लेकिन उतनी ही एक्टिव रहें जितना हर रोज रहती हैं तो आपको गंभीर किस्म के डिहाइडेªेशन का खतरा हो सकता है। उपवास के दौरान नमक न खाने से शरीर में सोडियम-पोटेशियम का स्तर भी घट सकता है।



उपवास से संबंधित सबसे प्रचलित मिथक यह है कि उपवास से पाचन संस्थान की सफाई हो जाती है। माना जाता है कि जैसे प्रत्येक व्यक्ति को हफ्ते में एक दिन विश्राम की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही पाचन-संस्थान के विश्राम हेतु एक दिन का उपवास आवश्यक है लेकिन सच यह है कि मनुष्य के पाचन-संस्थान में प्राकृतिक रूप से सफाई की व्यवस्था है। उसकी सफाई के लिए व्रत-उपवास की कोई जरूरत नहीं। केवल उचित आहार लेने की जरूरत होती है, जिसमें भरपूर फाइबर हो। फाइबर या रेशायुक्त आहार पाचन और उत्सर्जन प्रणाली दोनों को अपना काम अच्छी तरह करने में मदद करता है।




भोजन में पाया जाने वाला फाइबर दो प्रकार का होता है
(1) घुलनशील (2) अघुलनशील।
अघुलनशील फाइब आतों में पानी को रोक देता है। इससे शरीर के अंदर जमा अनावश्यक पदार्थ फूल कर आकार में बड़ा हो जाता है और उसका बाहर निकलना आसान हो जाता है जिससे पेट हलका और साफ हो जाता है, कब्जियत चली जाती है।



घुलनशील फाइबर भोजन में उपस्थित काॅलेस्ट्राॅल में मिल जाता है और उसे आंतों में ही रोक देता है जिससे उसका अवशोषण नहीं होता और वह शरीर से बाहर निकल जाता है। इस तरह घुलनशील फाइबर रक्त में काॅलेस्ट्राॅल का स्तर नियंत्रित रखता है। साथ ही ही घुलनशील फाइबर छोटी आंत में ग्लूकोज का भी अवशोषण नहीं होने देता जिससे ब्लडशुगर भी नियंत्रित रहती है।



फाइबर मूलतः पौधों से ही प्राप्त होता है इसलिए हमें अपने भोजन में फल, सब्जियों, अनाज और फलियों को शामिल करना चाहिए। दूसरी जरूरी बात यह है कि भोजन करने से पाचन-प्रणाली और उत्सर्जन प्रणाली के काम में तेजी आती है। इसे गैस्ट्रोकाॅलिक रिफलेक्शन कहते हैं। यही कारण है कि कुछ लोगों को सुबह एक प्याला चाय पी लेने के बाद फौरन हाजत महसूस होती है। इस मामले में गैस्ट्रोकाॅलिक रिफलेक्स ही काम करता है। जब आप खाना नहीं खाते, यानी उपवास रखते हैं तो गैस्ट्रोकाॅलिक रिफलेक्स नहीं होता।



कुछ लोगों में यह गलत धारणा भी हैं कि उपवास से शरीर को हानिकारक टाॅक्सिन व जहरीले पदार्थों से छुटकारा मिलता है जबकि सच इसके बिलकुल विपरीत है। उपवास से शरीर में हानिकारक टाॅक्सिन पैदा होते हैं। उपवास से शरीर में दो प्रकार के बदलाव आते हैं। शारीरिक बदलाव जैसे कमजोरी आना और रोगात्मक बदलाव, जो शरीर के विविध अंदरूनी अंगों में उपवास के कारण पैदा होने वाले टाॅक्सिन की वजह से होते हैं। ये दोनों ही बदलाव लंबे उपवास के कारण होते हैं।



हमारे पेट और आंतों में हर रोज 1500 मिली. अम्ल का रिसाव होता है। इसका असर दूर करने के लिए भोजन की जरूरत होती है। अगर हम खाना न खाएं तो भोजन का अवशोषण न होने के कारण अम्ल पेट और आंत की पर्तों को जलाता है जिससे पेट और आंत का अल्सर तक हो सकता है।
लंबे उपवास के परिणाम और भी गंभीर होते हैं। सामान्य स्थिति में शरीर को एक निश्चित मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइडेªट, फैट और विटामिन की जरूरत होती है। जब शरीर को ये पोषक पदार्थ नहीं मिलते तो वह एकत्रित पोषक तत्वों से ऊर्जा प्राप्त करता है। इससे हानिकारक टाॅक्सिन उत्पन्न होते हैं जो खून में मिल जाते हैं। इन टाॅक्सिन्स में सबसे अधिक हानिकारक लैक्टिक एसिड होता है जिससे मस्तिष्क, हृदय और फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है।



उपवास से कीटोन कणों की उत्पत्ति में तेजी आती है जो पेशियों की कोशिकाओं के केंद्रका और साइटोप्लाज्म में जमा हो जाते हैं, जिससे उनके सामान्य कार्य में रूकावट पैदा होती है। उपवास से और भी कई हानियां होती हैं, जैसे उपवास से मांसपेशियां नष्ट होती हैं, मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा होती हैं और जीवाणु संक्रमण होने से छोटी आंत में भी गड़बड़ी होती है।



हमारे समाज में प्रचलित कुछ मान्यताओं के कारण कभी-कभी उपवास बहुत ही आवश्यक हो जाता है परन्तु यह उपवास कैसे किया जाए कि उपवास के अगले दिन किसी समस्या का सामना न करना पड़े। इसके लिए यह आवश्यक है कि भोजन भले ही एक समय करें परंतु आपके द्वारा उपवास व अन्य सामान्य दिनों में ली जाने वाली कैलोरी का अनुपात लगभग समान होना चाहिए। इसके लिए आप लंबे समय तक भूखी न रहकर दूध, दही, फलों इत्यादि का प्रयोग करें।



निराहार और निर्जल उपवास बहुत नुकसानदेह होते हैं। इन्हें भूलकर भी न करें। अक्सर देखा गया है कि उपवास के बाद कुछ लोग जब खाना शुरू करते हैं तो खाने की पूरी कसर निकाल लेते हैं। ऐसे में पेट को आराम नहीं मिलता, उल्टे पेट में गड़बड़ी और छाती में जलन होती है। इसके लिए हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उपवास के बाद हल्का व संतुलित आहार लें।



कई लोग उपवास में भूख मारने के लिए दिन भर चाय या काॅफी का इस्तेमाल करते हैं। कैफीन की तलब अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग की होती है। दिन भर में चार से ज्यादा कप स्ट्रांग काफी पीने से कई तरह के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं मसलन चिड़चिड़ापन, उनींदापन, और बदन में कंपकपी वगैरह। स्ट्रांग चाय भी यह असर पैदा कर सकती है। इसलिए बेहतर यही होगा कि कैफीन की तलब होते ही सादा पानी या फलों के रस में पानी मिलाकर पिएं या कैफीन रहित दूसरे पेय पदार्थों जैसे शर्बत, लस्सी, छाछ, दही आदि का सेवन करें।