हर उम्र में होती हैं अपनी बीमारियां


बीमारी कभी उम्र नहीं देखती। किसी भी उम्र में अपना रंग दिखा देती है। वैसे खांसी, जुकाम, बुखार, इंफेक्शन यह तो जन्म के साथ ही जुड़ जाते हैं। कुछ बीमारियां उम्र के साथ स्वाभाविक रूप से जुड़ जाती हैं पर कुछ खतरनाक बीमारियां तो पूरे घर को परेशानी में लपेट लेती हैं। बीमार तो परेशान होता ही है। घर के लोग बस अस्पताल के चक्कर काट कर आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान रहने लगते हैं।
अगर हम अपना चेकअप उम्र के साथ साथ करवाते जाएं तो शायद बड़ी बीमारी की गिरफ्त से कुछ हद तक बचा जा सकता है। आइए जानें कुछ इंफेक्शन से फैलने वाली बीमारियों के बारे में:-


लंग्स इंफेक्शन - इससे सांस लेने में परेशानी होती है। इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और ब्रीदिंग प्राब्लम्स बढ़ जाती हैं।
यूरिनरी इंफेक्शन - इस इंफेक्शन से यूटीआई, ब्लैडर प्राब्लम, यूरीन लीकेज, जलन आदि की समस्या बढ़ जाती है।
स्टमक और इंटेस्टाइन इंफेक्शन- से लूजमोशन, डीहाइड्रेशन, उल्टियां आदि की समस्या बढ़ती है।
वायरल इंफेक्शन - यह इंफेक्शन हवा में रहता है इससे जल्दी खांसी, जुकाम, बुखार होता है।
वाटर इंफेक्शन- साफ पानी न पीने से अक्सर पेट दर्द, पेचिश, हैजा, पीलिया और टाइफाइड होते हैं। कम पानी पीने से यूरिन संबंधी इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।
इन इंफेक्शनस से बचने के लिए प्रदूषित जगहों से दूर रहें। गर्म खाना खाएं, पानी साफ और पर्याप्त पिएं, शारीरिक सफाई का ध्यान रखें। सांस से संबंधित रोगी इनहेलर का प्रयोग करें। खाने से पूर्व हाथ धोएं, सब्जी बनाते समय अच्छी तरह से बनाएं, बर्तन साफ हो खाना ढक कर रखें। कभी कभी बच्चा जब उत्पन्न होता है उसे स्पाइन की जन्मजात समस्या हो सकती है।



0 से 5 साल तक के बच्चों का अक्सर पेट खराब रहता है। बुखार, खांसी- जुकाम रहता है। कभी कभी सांस से संबंधित समस्या भी हो सकती है। अगर नजरअंदाज किया जाए तो आगे जाकर अस्थमा का रूप ले लेती है।



5 से 12 साल तक के बच्चों को वायरल इंफेक्शन जल्दी होता है, यूरिन और बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा भी रहता है। बच्चों को इंटेस्टाइन इंफेक्शन भी अधिक होता हंै क्योंकि बच्चा परहेज नहीं कर पाता। बैक्टीरिया बार बार अटैक करता है। चिकनपाॅक्स, फ्लू भी इस उम्र के बच्चों को अधिक होता है क्योंकि बच्चे बाहर एक दूसरे के संपर्क में ज्यादा रहते हैं। किसी किसी बच्चे को हड्डियों से संबंधी रोग भी हो जाते हैं। समय पर इलाज जरूरी होता है। एक सर्वे के अनुसार दिल्ली के बच्चों को इस आयु में स्टोन का भी खतरा अधिक होता है।



13 से 19 साल के बच्चों को वैसे बीमारी का खतरा कम रहता है। फिर भी कोई भी परेशानी होने ंपर डाक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है। क्योंकि शुरूआती उम्र में हार्मोंस की तब्दीली के कारण बच्चों को उचित मार्गदर्शन की जरूरत होती है।



20-40 साल की उम्र में अपनी सेहत का ध्यान रखें तो हम स्वयं को कुछ हद तक बीमारियों से बचा कर रख सकते हैं। 30 वर्ष के उपरांत हर दो साल के अंतराल में अपने कुछ टेस्ट करवाते रहें ताकि बीमारी को शुरू से पकड़ा जा सके। अपना बीपी , शुगर, थायराइड, कोलेस्ट्राल की जांच करवाते रहना चाहिए ताकि समय रहते संभल सकें। अपना लाइफ स्टाइल सक्रिय रखें। खानपान पर नियंत्रण रखें। नमक और चीनी कम कर दें।



40 से 60 साल के इस दौर में सेहत का ध्यान रखने की अधिक आवश्यकता होती है। इस आयु में महिलाओं को हार्ट का चेकअप, मेमोग्राफी, बोन डंेसिटी, पेप स्मीयर, कोलेस्ट्राल आदि का नियमित चेकअप करवाते रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त कहीं भी कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें। पुरूषों को भी प्रोस्टेट ग्रंथि, कोलेस्ट्राल और हड्डियों से संबंधी टेस्ट करवाने चाहिए।



60 से अधिक आयु वाले लोगों को न्यूरोलााजिकल बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है, आंखों में मोतियाबिंद आदि हो सकते हैं। इस आयु के लोगों को भी मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना चाहिए। हल्के फुल्के व्यायाम, सैर, प्राणायाम, घर के काम करते रहने चाहिए। खड़े अधिक नहीं रहना चाहिए, उबड़ खाबड़ रास्तोें पर नहीं जाना चाहिए, खाना सादा और पौष्टिक खाना चाहिए। सर्दियां आने पर गर्म कपड़ों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जूते चप्पल स्लिपरी न हों, इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अपनी श्रवण शक्ति की जांच करवाएं क्योंकि इस उम्र में सुनाई कम देता है। उछलकूद से बच कर रहें। वाशरूम को हमेशा सूखा रखें।



कोई भी शारीरिक या मानसिक समस्या होने पर डाक्टर से संपर्क करें। मन को परिवार से थोड़ा हटा कर रखें, आवश्यकता पड़ने पर छोटों का मार्गदर्शन करें पर अपने विचार न थोपें।