स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण है जल


खाये बिना मनुष्य कई दिनों तक जीवित रह सकता है किन्तु केवल 60 से 70 घंटे जल न पीने से मनुष्य की मृत्यु हो जाती है इसलिए जीवन-रक्षा के लिए जो कुछ आवश्यक है, उनमें वायु के बाद जल का ही स्थान है।


प्रकृति शरीर के प्रत्येक तन्तु को जो खाद्य परोसती है, जल ही उसका वाहन है। शरीर का प्रत्येक क्षुद्रतम कोष भी सर्वदा पानी से धुलता रहता है, इसलिए शरीर में रस की समता को बनाये रखने के लिए प्रतिदिन पर्याप्त पानी पीना चाहिए।


यदि हम ऐसा न करें तो प्रकृति खून, मांसपेशियों और शरीर के विभिन्न तन्तुओं से जलीय अंश लेने के लिए बाध्य होती है। फलस्वरूप प्यास बढ़ती है, आंखें बैठ जाती हैं, होंठ और जीभ सूख जाते हैं, मल सख्त होता है, वजन घट जाता है तथा शरीर में जल का अभाव होने से अम्ल और क्षार के अनुपात में परिवर्तन आता है और कभी-कभी शरीर का ताप बढ़ जाता है।


शरीर में से बहुत सा विष प्रतिदिन बाहर निकलता है और यह केवल यथेष्ठ जल के माध्यम से ही संभव होता है। अगर ऐसा न हो तो शरीर का विष अन्दर रूककर रक्त को विषाक्त बना देता है और इससे होने वाला रोग ‘यूरेमिया‘ कहलाता है।


जल पीने का नियम यही है कि जब पेट खाली रहता है, तब ही यथेष्ठ जल का पान करना चाहिए, इसलिये जल पीने का सर्वश्रेष्ठ समय प्रातःकाल नींद से उठते ही है। पर्याप्त जल पीने से शरीर की भिन्न-भिन्न रस-स्रावी ग्रंथियों का स्राव बढ़ता है।


पानी के साथ नींबू का रस लेने से अत्यधिक लाभ होता है। नींबू पानी पीने से खाद्य वस्तु छोटी आंत में सड़ नहीं पाती और उसमें विष का उत्पादन बंद होता है। जल पान शरीर की सफाई की एक विधि है। पानी पीते ही वह खून के द्वारा शरीर के तन्तुओं के भीतर फैल जाता है और शरीर के अणु-परमाणु तक को धोकर नाना प्रकार का कूड़ा-कचरा लेकर शरीर से बाहर निकल जाता है, अतः जल पान स्वयं में ही एक चिकित्सा है।


अजीर्ण रोग में पानी दवा की तरह काम करता है। मन्दाग्नि में भोजन के आधे घंटे से 45 मिनट पूर्व आधा गिलास ठंडा पानी पीने से ठंडक की प्रतिक्रिया के द्वारा पाकस्थली में एक उत्तेजना का संचार होता है जिससे परिपाक की शक्ति बढ़ती है।


ज्वर के समय जल पीने से बहुत लाभ होता है। रोगी जितना पानी बिना कष्ट के पी सकता है, उतना ही पानी उसे पीने देना चाहिए। जुकाम होने पर नींबू के रस के साथ पर्याप्त पानी पीना उचित है। इससे शरीर का यथेष्ट विष बाहर निकल जाता है और रोग कम हो जाता है। वात-व्याधि तथा जोड़ों की सूजन आदि में जल पान अत्यन्त लाभदायक है। यह रक्त प्रवाह को तरल करते हुए यूरिक एसिड तथा अन्यान्य हानिकारक पदार्थो को घोल कर शरीर से बाहर निकाल देता है।



पथरी में जितना संभव हो, पानी पीना चाहिए। पित्त पथरी में यथेष्ट जल पान करने से यकृत धुल जाता है और पित्त इस प्रकार पतला हो जाता है कि वह ठोस नहीं हो पाता तथा ठोस पत्थर भी धीरे-धीरे पिघलकर बाहर निकल जाता है।


मधुमेह रोग में शरीर में अतिरिक्त चीनी जमा हो जाती है। यथेष्ट जलपान करने से वह पसीने तथा पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है। एक अनुभवी डाॅक्टर का कहना है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन आठ औंस गिलास के आठ गिलास पानी पिए तो दो पीढ़ियों के भीतर दुनिया से मधुमेह रोग संपूर्ण रूप से समाप्त हो सकता है।


जलपान सभी अवस्थाओं में अत्यन्त हितकर होने पर भी किसी-किसी समय सावधानी का अवलम्बन करना आवश्यक है।


शरीर की क्लान्त अवस्था में कभी ठण्डा पानी नहीं पीना चाहिए। जब बुखार से रोगी को पसीना आता रहता है, तब किसी भी अवस्था में उसे शीतल जल नहीं देना चाहिए। उस समय प्यास लगने पर गरम पानी दिया जा सकता है। बहुत दुर्बल व्यक्ति को भी कभी अधिक शीतल जल नहीं पीना चाहिए और न ही एक साथ अधिक पानी पीना चाहिए। जो लोग यथेष्ट जल पान नहीं कर सकते, उन्हें पहले पहल केवल एक चैथाई गिलास पानी पीना और क्रमशः मात्रा बढ़ाना उचित है।


यह आवश्यक है कि पीने का पानी बहुत साफ होना चाहिए। गन्दा पानी पीने से नाना प्रकार के रोग हो जाते हैं। जहां साफ पानी नहीं मिलता, वहां पानी उबालकर और उसके बाद छानकर पीना चाहिए।