सर्वोपरि आभूषण है मुस्कुराहट


मुस्कुराना और हंसना भी एक बहुत बड़ी कला है। जिसने हंसना सीख लिया समझ लीजिए कि सारे सुख उसकी झोली में आ पड़े हैं। मुस्कान मनुष्य के पास एक प्रत्यक्ष दैवीय वरदान है। जो हंसता-हंसाता रहता है वह चुम्बक की तरह आकर्षण शक्ति से भरा पूरा और पुष्प के समान सुंदर व सुगंधित बना रहता है। यह अपना निजी उत्पादन है।


यदि इसे स्वभाव का अंग बना लिया जाये तो व्यक्तित्व असाधारण रूप से सुंदर बन सकता है। जिसे मुस्कुराने की आदत है वह सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति पर अपनी छाप छोड़ देता है। हंसना जीवन का सौरभ है।



प्रसिद्ध दार्शनिक इमर्सन ने कहा है ’वस्तुतः हास्य एक चतुर किसान है जो मानव जीवन पथ के कांटों के झाड़ झंखाड़ों को उखाड़कर अलग कर देता है और सद्गुणों के सुरभित वृक्ष लगा देता है।‘ एक अन्य विचारक का कथन है-’अगर तुम हंसोगे तो सारी दुनियां हंसेगी परंतु तुम्हारे रोने पर कोई तुम्हारे साथ नहीं रोयेगा।‘



प्रसन्नता से मुस्कुराते हुये व्यक्ति को देखकर दूसरे लोग भी खुश होने लगते हैं। दुःखी व्यक्ति प्रसन्नता के प्रवाह में अपने दुःखों को भूल जाता है।
मेसीलन का कथन है- स्वस्थ एवं हंसमुख होना शरीर के लिये उसी प्रकार लाभदायक है जैसे सूर्य की धूप वनस्पतियों व शाक सब्जियों के लिये।
हंसो और मोटे हो जाओ, यह उक्ति अक्षरशः सही है। हंसी वह व्यायाम है जिसे करने से शरीर पुष्ट होता है।



हंसना एक ऐसा टाॅनिक है जिसका पान करके व्यक्ति तंदुरूस्त हो जाता है खुशी ऐसी औषधि है जिसका सेवन करने से मनुष्य के अंदर के घाव ठीक हो जाते हैं।



मानव का जीवन रोते-बिलखते हुए जीने के लिये नहीं है बल्कि गाते, मुस्कुराते, हंसते खेलते बिताने के लिये है। मुस्कान सुखों की खान है।
नये पौधे में जिस प्रकार खाद एवं पानी की आवश्यकता होती है उसी तरह मानव के लिये भी प्रसन्नता आवश्यक है। यदि जीवन में प्रसन्नता रूपी नींव ही त्राुटिपूर्ण रह जायेगी तो फिर जिंदगी उन्नतिशील कैसे बनेगी? प्रसन्नता जीवन वृक्ष की जड़ों को खाद-पानी देती है तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करती है।



आपकी मुस्कुराहट आपके व्यक्तित्व का आईना है। आपकी खनखनाती हंसी न जाने कितने लोगों को जीने का सहारा प्रदान करती है। भगवान ने प्रकृति को शायद इसी निमित्त बनाया है कि हम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उससे हंसना सीखें, मुस्कुराना सीखें।