पति का प्रेम प्रसव पीड़ा को कर देता है हल्का



गर्भवती स्त्री के लिए पति का सहयोग बहुत जरूरी है। प्रायः देखने में आता है कि पुरूष गर्भवती पत्नी की ओर से विरक्त जैसे हो जाते हैं। उनका व्यवहार उदासी भरा हो जाता है। इससे स्त्री के मन को बहुत दुःख पहुंचता है। गर्भवती स्त्री के मन में ऐसे समय काम इच्छा की चाह नहीं होती बल्कि वह लाड़-प्यार, दुलार आदि की भूखी होती है।


समझदार पुरूष अपने मीठे बोलों व सरल व्यवहार से पत्नी को खुश रखने का प्रयास करते हैं। इससे स्त्री की आत्मा को बड़ा संतोष प्राप्त होता है, जिससे महिला प्रसव पीड़ा का ख्याल करके कभी डरती नहीं, और प्रसव आसानी से होने में सहायता मिलती है।


पति को चाहिये कि पत्नी को खुश रखने वाली बात-चीत में कमी न आने दे। काम-काज की बातों के अलावा, आत्मीय आधार पर उससे समय-समय पर बातें करता रहे। घर के अच्छे कामों में, साज-संभाल सम्बन्धी मामलों में उससे मशविरा लेता रहे और किसी प्रकार का छिपाव-दुराव न करे।



जब कभी बाहर जाये तो कुछ न कुछ खाने या उपयोग की चीज स्त्री के लिए लेता आये। समय-समय पर उसका हाल चाल पूछकर उसे आदर देता रहे। उसे हमेशा प्रयास करते रहना चाहिये कि जो कुछ वह बाहर से लाए, वह सुन्दर हो, जो बातें करें वह सुख देने वाली हों, प्रसन्न करने वाली हों। इस मामले में फूलों के गुलदस्ते घर में रखना, अपने घर की सजावट करना बड़ा उपयोगी रहता है।


पति स्त्री का खूंटा होता है, जिसके बल पर वह नाचती है, अतः सबसे बड़ी वस्तु पत्नी के लिए पति का प्रेम करना है। गर्भकाल में जब स्त्री को यह विश्वास हो जाता है कि उसका पति उससे सच्चे हृदय से प्रेम करता है तो सारे अभाव उसके लिए दूर हो जाते हैं। इसलिए गर्भकाल में पति का सबसे बड़ा कर्तव्य अपनी पत्नी को सच्चा प्रेम करना है। यह मिल जाने पर वह पौधे की तरह हरी-भरी रहेगी और गर्भ में पल रहे शिशु का स्वाभाविक विकास होता रहेगा।