पारिवारिक विवादों के निपटारे में मुखिया की अहमियत


विवाद कहां नहीं होते? कोई कितना भी सभ्य, शिक्षित हो, एक से दो और दो से चार होते ही कहीं न कहीं, किसी न किसी कोण से विवाद उठ खड़ा होता है। यूं तो विवाद के मूल में लोभ और अहंकार ही अधिकांशतः पाया जाता है परन्तु परिवार के दायरे के बाहर वाले विवादों में द्वेष, दुर्भावना और भेदभाव भी अक्सर मिलते हैं।



भावनाओं को नियन्त्रित रखने की क्षमता आज का मनुष्य खोता जा रहा है। भावनाओं या दुर्भावनाओं के उफान में बहा आदमी कुछ भी अच्छा-बुरा कर सकता है। स्वार्थ यानी लोभ की सीमाएं समाप्त हो जाने से विलासी जीवन की चाह से परिवार में दूसरों की अनदेखी की जाने लगी है। बड़ों की कद्र करना भूलते जा रहे हैं। माता पिता और मुखिया अपने ही परिजनों के विवाद को तमाशबीन बनकर देखने को मजबूर हैं क्योंकि आज के ’माडर्न युवा‘ उन्हें दिमाग से ज्यादा मानते ही कहां हंै?



ऐसे में पति-पत्नी, भाई-बहिन, मां-बेटी, पिता-पुत्र के छोटे से छोटे विवादों को अकारण ही कोर्ट कचहरियों की घाणी में पेल दिया जाता है अथवा ऐसा करने के लिए अन्य कुटिल व्यक्तियों द्वारा प्रेरित कर दिया जाता है और फिर एक ऐसे छोटे से विवाद के लिए रह जाता है कोर्ट कचहरी में चक्कर काटते जाना, काम-धंधे छोड़ कर राशन पानी, बच्चों की पढ़ाई-शादी विवाह के लिए कठिन परिश्रम से कमाई गई रकम को पानी की तरह बहाते जाना और अपने ही परिजन को एक छोटे से विवाद के लिए, एक तात्कालिक बात के लिए कानून के हाथों दंडित करवाना।


दहेज हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की बात मैं यहाँ कतई नहीं कर रहा हूं। मैं सिर्फ पारिवारिक झगड़ों व विवादों तक यहां पर सीमित हूं। वास्तव में कई पारिवारिक झगड़े-विवाद ऐसे होते हैं जो समय बीतने पर स्वतः हो निष्प्रभावी ही जाते हैं। कल तक जो झगड़ालू लग रहा था, वह समय बीतने पर ऐसा लगने लग जाता है मानो कुछ हुआ ही न था। उसी का नाम परिवार है। जहां दो से चार और चार से आठ होते हैं तो विवाद और झगड़े भी चाहे-अनचाहे हो ही जाते हंै।



ऐसे में परिवार के मुखिया को ही अहमियत दी जानी चाहिए। परिवार के बाहर के व्यक्ति को जहां तक संभव हो, बीच में न लायें क्योंकि दूसरा व्यक्ति आपकी समृद्धि और शांति के लिए अपनी जेब से तो कुछ लगायेगा नहीं। जो कुछ भी चूना लगेगा, वह सिर्फ आपका ही।



कोर्ट कचहरियों में भी लम्बित पारिवारिक मामलों में परिवार के मुखिया की बात अहमियत दी जानी चाहिए। पारिवारिक विघटन को रोकने और सहज स्वाभाविक खुशियों की बहाली में शायद यह मददगार हो सकेगा।