घर की आर्थिक स्थिति पर भी गौर करें


आज संतान को अच्छे स्कूल काॅलेज में पढ़ाना एक अत्यधिक खर्चीला मामला है। सभी अभिभावकों के लिए यह संभव नहीं है। दूसरी तरफ विशिष्ट शिक्षा जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल इत्यादि भी बहुत खर्चीली है। यह एक अलग मुद्दा है कि कठिन प्रतियोगिता के कारण दाखिला भी इतना आसान नहीं कि सभी लड़के लड़कियां सहजता से अपनी मनोवांछित पढ़ाई कर सकें।


छात्र छात्राओं को हमेशा इस बात का अहसास होना चाहिए कि उन के घर की आर्थिक स्थिति क्या है। उन के माता पिता की आय कितनी है और परिवार का बोझ किस पर कितना है।


अगर घर में कमाने वाला मात्र पिता है और खर्च का सारा दारोमदार उन पर है तो जाहिर है उसी आय में जरूरतों को पूरा करना पड़ेगा।


नौकरीपेशा पिता की आर्थिक स्थिति और भी सीमित हो जाती है। ऐसे में अगर उन के लड़के लड़कियां अपनी इच्छा और जरूरत को काबू में न रख दूसरे अमीरजादों की नकल कर फैशनपरस्त तौर तरीके अपनाना शुरू कर दें तो इस से न सिर्फ उन के आचरण पर धब्बा लगेगा वरन पिता और परिवार को भी अनेक आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।


जब लड़के लड़कियां अपने परिवार से दूर किसी अन्य शहर में रह कर पढ़ रहे होते हैं तो उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि किसी प्रकार वे पिता का आर्थिक बोझ कुछ कम करें। कम से कम अपने खर्च में अनावश्यक जरूरतों को घटा कर वे ऐसा कर सकते हैं। साथ ही सैरसपाटे के समय वे कहीं ’पार्ट टाइम‘ काम कर अपनी आर्थिक आवश्यकता की कुछ हद तक पूर्ति कर सकते हैं।


महानगरों में इस प्रकार की तमाम संभावनाएं मौजूद होती हैं। कोई भी अपनी क्षमता और समयानुसार इस तरह का आर्थिक उपार्जन आसानी से कर सकता है। स्कूल के विद्यार्थियों को ट्यूशन दे कर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिख कर भी अर्थोपार्जन किया जा सकता है। इसके अलावा और भी कई उपयुक्त तरीके हो सकते हैं।


अपने समय का इस प्रकार सदुपयोग कर वे न सिर्फ स्वयं को आर्थिक तंगी से उभार लेते हैं बल्कि अपने माता पिता के प्रति भी उत्तम कर्तव्य का निर्वाह करते है। आर्थिक सहायता के अलावा इस से एक महत्वपूर्ण फायदा यह भी होता है कि लड़के लड़कियां अपने खाली समय का उचित उपयोग कर पाते हैं। साथ ही उन्हें व्यावहारिक कामकाज का अनुभव भी प्राप्त होता है और स्वयं के प्रति आत्मविश्वास भी बढ़ता है जो जीवन की तरक्की के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक है।



इतना ही नहीं, वे नाजायज सैरसपाटे, उलटे सीधे खर्च एवं गलत किस्म के अमीरजादों ओर अमीरजादियों की बुरी संगत से भी बचे रहते हैं तथा नशीली दवाओं एवं अन्य बुरे व्यसनों के अभ्यस्त नहीं हो पाते।


अक्सर देखा गया है कि घर से दूर पढ़ रहे छात्र छात्राएं न सिर्फ बुरी संगत का शिकार होते हैं बल्कि अपने फिजूल खर्चों के लिए घर वालों को भी परेशान करते रहते हैं। अपनी नाजायज जरूरतों को जब वे घर से पूरा करवा पाने में असमर्थ हो जाते हैं तो अन्य गलत माध्यमों से पैसों का जुगाड़ करने की भी चेष्टा करते हैं। फलस्वरूप धीरे-धीरे वे पतन के गर्त में गिरते चले जाते हैं।


घर से जिन सपनों को ले कर आते हैं, वे कुकर्म के पथ पर अग्रसर होने से समाप्त होने लगते हैं। इससे उन का जीवन तो बरबाद होता ही है, परिवार के सपने भी टूट जाते हैं और सामाजिक प्रतिष्ठा भी समाप्त हो जाती है।


महानगरों, बड़े शहरों में पढ़ने लिखने वाले ऐसे बहुत से छात्र छात्राएं हैं जो अपनी आर्थिक जरूरतों का बोझ बहुत हद तक स्वयं पूरा कर लेते हैं। कभी-कभी तो लड़के लड़कियां अपनी जरूरतों को पूरा कर कुछ पैसे भी बचा लेते हैं और यदाकदा अपने परिवार की किसी जरूरत के समय उन की मदद कर एक योग्य संतान का फर्ज अदा करते हैं।


छात्र छात्राएं अगर अपने पिता की आर्थिक स्थिति, घर-परिवार की आवश्यकता और मजबूरी को एक संवेदनशील व्यक्ति की तरह सोचें तो कोई कारण नहीं कि पिता को किसी प्रकार का मानसिक कष्ट या तनाव मिले। अपने ऐसे व्यवहार से वे न सिर्फ माता पिता की नजरों में सुपात्र बनेंगे बल्कि जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते जाएंगे और एक दिन अपनी मनोवांछित मंजिल को हासिल करने में कामयाब रहेंगे।