दहेज विरोधी कानून की आड़ में


दहेज विरोधी कानून स्त्रियों का शोषण रोकने के लिए बनाया गया लेकिन उसको कार्यान्वित करने पर जो सच्चाई सामने आई, वह एक त्रासद स्थिति है। लड़कियों की भलाई करते किस तरह वर पक्ष के लोग लपेटे में आने लगे, यह देश भर में इस तरह के होने वाले आंकड़ों से पता चलता है।


लोक अदालत के न्यायाधीश रहे श्री लांबा के अनुसार इस कानून से संबंधित जो केस आते हैं उनमें से 70 से 80 प्रतिशत मुकदमे ऐसे होते हैं जो दहेज विरोधी कानून का सहारा लेकर अपने व्यक्तिगत झगड़े अथवा पति तथा ससुरालियों पर झूठा आरोप लगा उन्हे जबर्दस्ती फंसाने के लिए दायर किए जाते हैं।


ऐसे में जो सही केस होते हैं उन्हें न्याय मिलने में देरी हो जाती है या उन्हें न्याय नहीं मिल पाता।


स्त्री शिक्षा ने स्त्रियों को जहां अपने अधिकारों के प्रति सचेत किया है, उनमें आत्मविश्वास जगाकर अन्याय से लड़ने की हिम्मत दी है, वहीं आर्थिक स्वतंत्रता ने उनमें अहंकार भी जगाया हैं। अब वे पुरूष की सहचरी बनकर रहने में विश्वास नहीं रखती बल्कि अपनी अस्मिता का डंका बजाने को तैयार रहती हैं। अपनी मां, दादी व नानी की तरह दब्बू और आत्मबलिदानी होना उन्हें कतई मंजूर नहीं। प्रतिक्रियास्वरूप वे टी वी सीरियलों की खलनायिकाओं की तरह स्वार्थी, क्रूर परपीड़क व चालबाज बनकर जीना पसंद करती हैं।


इस तरह दिशाहीन होकर चलने से वे पति के घर में न स्वयं सुख शांति से रहती है,ं न पति को रहने देती हैं। पति को सबसे अलग करके भी उन्हंे चैन नहीं मिलता। अपने अह्म और उच्छृंखलता को लेकर वे पति का जीना भी हराम कर देती है। उसके कुछ कहने पर उनके पास दहेज कानून का ब्रह्मास्त्र होता है। स्वयं पति का रिमोट कंट्रोल बन वे उसे मर्जी मुताबिक चलाना और आॅन आॅफ कर देना चाहती है।



कई बार अभिभावक स्वयं लड़की को ससुरालवालों के विरूद्ध उकसाते हैं। कई बार उनकी निगाह लड़की के ससुरालवालों के धन पर होती है। लड़कियों के मन में पीहर वालों के लिए साॅफ्टकाॅर्नर होता है। उनके मोह में अंधी वे नैतिकता को ताक पर रख उनके कहे अनुसार चलने लगती हैं।


यह जरूर है कि गलत बातों को एक सीमा तक ही सहन किया जाना चाहिए और दहेज को लेकर उत्पीड़न को तो बिल्कुल नहीं, न ही किसी प्रकार के यौन शोषण को सहन किया जाना चाहिए। अपने अधिकारों को वो जरूर समझे मगर उनका गलत फायदा कभी न उठाये।


लड़की के मां बाप को भी अपने नैतिक कत्र्तव्यों को ध्यान में रखकर ही चलना चाहिए। लड़की को शादी के बाद दूसरे घर में समायोजन के लिए वक्त दें। काफी फसादों की जड़ लड़की के माता पिता का उसके विवाहित जीवन में अनुचित दखल होता है। उसे अच्छी शिक्षा दें। भड़काएं नहीं। दहेज विरोधी कानून की सचमुच किन्ही दुखियारों को जरूरत होती है। उसका गलत इस्तेमाल कर उसे नाकारा न बनाएं।