पक्षाघात से बचाव

सही जीवनशैली द्वारा पक्षाघात से बचाव 



पक्षाघात होने पर व्यक्ति अपंग हो जाता है एवं असमय मौत के मंुह में समा जाता है। पहले यह प्रौढ़ावस्था में या 50 वर्ष की आयु के पश्चात होता था किन्तु अब यह किसी भी आयु में होने लगा है। भारत ही नहीं, विश्व में सर्वाधिक लोग इसी के कारण अपंग हो जाते हैं। यह कैंसर एवं हृदयरोग के बाद मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण माना जाता है।


शरीर की समस्त क्रियाओं का नियंत्रण केंद्र हमारे मस्तिष्क में है। इसे सदैव आक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है यह बाधित होने पर व्यक्ति पक्षाघात का शिकार हो जाता है। इस पक्षाघात को लकवा, फालिज, अधरंग, ब्रेन-स्ट्रोक, ब्रेन-अटैक, हेमीप्लीजिया, पेरालिसिस आदि कहा जाता है। शरीर के सभी स्नायु तंत्र यहीं से निकलते हंै। हाथ-पैर, हृदय, श्वांस का चलना, बोलना, देखना, सूंघना, हावभाव व्यक्त करना आदि मस्तिष्क के नियंत्रण में है और वह दिन-रात सोते-जागते सदैव कार्य करते रहता है। अतः मस्तिष्क को इस क्रियाशीलता के लिए रक्त वाहिनियों के द्वारा सदैव आक्सीजन तथा ग्लूकोज आदि की जरूरत पड़ती है। इसमें रूकावट या गड़बड़ी की स्थिति में व्यक्ति पक्षाघात का शिकार हो जाता है जिससे वह अपंग या असमय मृत्यु के मुख में पहुंच जाता है।


इस ब्रेन-अटैक या ब्रेन स्ट्रोक की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति का जितना जल्दी उपचार आरंभ होता है वह उतना ही शीघ्र स्वस्थ हो जाता है और अपंग होने एवं मृत्यु मुख में जाने से बच जाता है। इस पक्षाघात, अधरंग, लकवा या फालिज आदि नाम से सर्वज्ञात स्थिति का सभी चिकित्सा विधियों में उपचार है।



इसको लेकर दुनियां भर में परंपरागत चिकित्सा एवं नुस्खे उपलब्ध हंै। आधुनिक चिकित्सा विधि में इसका सटीक उपचार है। इसके अलावा जीवन शैली में सुधार लाने या उसे सही करने से भी पीड़ित व्यक्ति शीघ्र स्वस्थ हो जाता है।


कारण-


पहले पक्षाघात की बहुत कम घटनाएं सामने आती थीं किन्तु अब आधुनिक, व्यस्त एवं तनावपूर्ण जीवन शैली के कारण पक्षाघात की घटनाएं बढ़ गई हैं। लकवा कभी भी हो सकता है। यह हाई बीपी. कोलेस्ट्राल, धूम्रपान, मधुमेह मोटापा, हृदयरोग, तनाव, पूर्व में पक्षाघात होने, अधिक मानसिक कार्य, सदमा, अति सेक्स, गलत भोजन, तेज ठंड, सिर की किसी तेज बीमारी, मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में चोट, नशे के अधिक उपयोग आदि कारणों से होता हैं। इसमें मस्तिष्क की नसें फट जाती हैं या उनमें रक्त का थक्का जम जाता है जिससे रक्त आक्सीजन एवं ग्लूकोज आदि का मार्ग प्रभावित या बाधित हो जाता है।


लक्षण-


पक्षाघात पीड़ित व्यक्ति का सिर घूमता है, चक्कर आता है। उसे चलने में कठिनाई होती है। स्पष्ट बोल नहीं पाता है। चेहरे व शरीर का एक भाग, आधा या संपूर्ण भाग कड़ा हो जाता है या खींच जाता हैं नजर प्रभावित होती है। प्रभावित भाग कमजोर हो जाता है। सुन्नपन, सिर या पीड़ित भाग की नशों में तीव्र दर्द होता है। उसका शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता है।


बचाव-


पीड़ित व्यक्ति के लिए बेे्रन अटैक, ब्रेन हेमरेज के प्रथम पांच घंटे अति महत्त्वपूर्ण होते हैं। उसका जितना जल्दी उपचार आरंभ होता है वह उतना ही अधिक व जल्द स्वस्थ होता है। ऐसे व्यक्ति को वजन नहीं बढ़ने देना चाहिए। जीवनशैली में सुधार लाकर व्यायाम को उसमें स्थान देना चाहिए। बीपी, शुगर, कोलेस्ट्राल नियंत्रित करना चाहिए। धूम्रपान, नशापान त्याग देना चाहिए। मांसाहार, तेल, घी, नमक को अत्यंत न्यून कर देना चाहिए।


तनाव, चिंता व लगातार काम करने से बचें। हंसमुख रहें। मनोरंजन के हास्य माध्यमों, कार्यक्रमों को महत्त्व दें। अवसर आने पर खुलकर ठहाके लगाकर हंसिए। भोजन हल्का ताजा, सादा, सुपाच्य हो एवं उसमें सूप, सलाद, जूस, रायता, अंकुरित अनाज पूर्ण अनाज, फल-फूल, सब्जी का उपयेाग करें। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और सुखी रहें।