कैसा हो स्वास्थ्यकर भोजन?


शरीर को स्वस्थ रखने के लिए तथा आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है। आज के समय में बहुत-से ऐसे भी व्यक्ति हैं जिन्हें यह मालूम ही नहीं होता कि किस प्रकार का भोजन किया जाय? पेट भरने के लिए तथा जीभ के स्वाद के लिए भोजन ग्रहण करने से पहले व्यक्ति का यह जानना आवश्यक है कि शरीर के लिए किस तरह का भोजन लाभदायक रहता है?


अगर भोजन ऐसा हो, जिसे देखते ही मन में अरूचि उत्पन्न हो जाये तो ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए। यह बात समझने की है कि जिस भोजन से अरूचि उत्पन्न हो, उसे यदि बेमन से ग्रहण भी कर लिया जाये तो वह सही प्रकार से पचता नहीं है। इसका कारण यह होता है कि ऐसा भोजन करने से पाचक रस भी ठीक प्रकार से नहीं बन पाता है। भोजन के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।



आचार्य चरक के अनुसार बासी भोजन आलस्य को उत्पन्न करता है। बासी भोजन के करने से स्मरणशक्ति कमजोर होती है साथ ही कौमार्य रक्षण शक्ति भी कमजोर होती है। बासी भोजन प्रमेहकारक भी होता है जिससे नवयुवकों को स्वप्नदोष तथा नवयुवतियों को श्वेतप्रदर की बीमारी हो सकती है। अतएव हमेशा ताजा भोजन ही हितकर होता है।


हमेशा एक ही प्रकार का भोजन न करके भोजन में परिवर्तन अवश्य करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति हमेशा रोटी एवं मूंग की दाल ही खाता रहा है, तो कभी सब्जी, कभी कढ़ी का बदलाव अवश्य ही करना चाहिए। ऐसा करने से भोजन के प्रति रूचि बढ़ती है और पाचन क्रिया में भी वृद्धि होती है।


एक समय में भोजन में अनेक शाक, अचार, मिठाइयां आदि न खाकर कम से कम पदार्थों को ही भोजन में स्थान देना चाहिए। रोटी के साथ एक दाल, सब्जी और सलाद आदि ही हितकर है। इस बारे में एक विदेशी लेखक का कथन है कि-’मेरे सामने जब विविध भोजनों के पात्र आते हैं तो उन पात्रों की आड़ में विविध रोगों को घात लगाये हुए बैठा देखता हूं।‘ वास्तविकता तो यह है कि पाचन शक्ति को अच्छी दशा में रखने के लिए सादे भोजन से बढ़कर कोई उत्तम पदार्थ नहीं है। भोजन सादा और मिर्च मसाले कम से कम हों, वही हितकर होता है।


रोटी ऐसी खानी चाहिए जो न तो अधिक जली हुई हो और न ही कच्ची हो। जली रोटी में जहां पौष्टिक तत्व कम हो जाते हैं, वहीं कच्ची रोटी पेट में दर्द, अजीर्ण आदि पेट के रोग उत्पन्न कर देती है।


हरे शाक पर्याप्त मात्रा में खाने चाहिए। अपनी स्थिति के अनुसार ऋतुफल एवं मेवों को भोजन में अवश्य ही सम्मिलित करना चाहिए। जलपान में सूखे मेवों का प्रयोग काफी लाभदायक होता है।



भोजन हमेशा ऐसा हो जो आसानी से पच जाये। भोजन के साथ किसी रसेदार शाक या दाल आदि का होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि शुष्क भोजन ठीक तरह से पच नहीं पाता है और जठराग्नि से दग्ध होकर विदग्धाजीर्ण उत्पन्न कर देता है जिससे छाती और कलेजे में जलन होती है। खट्टी डकारें भी आती हैं। शुष्क भोजन से शरीर की धातुओं की ठीक तरह से वृद्धि भी नहीं हो पाती और रक्ताभिसरण की क्रिया मंद हो जाती है। इससे मलावरोध भी उत्पन्न हो जाता है।


भोजन में घी, तेल, मिर्च, खटाई आदि पदार्थ इतने अधिक न हों कि उनका पाचन ही कठिन हो जाये। घी आदि को भोजन में पकाते समय ही डाल देना चाहिए क्योंकि कच्चा घी आसानी से पचता नहीं है। घी का इस्तेमाल हमेशा आग पर कड़काने के बाद ही करना चाहिए। बिना कड़काये घी का इस्तेमाल पेट-दर्द को भी उत्पन्न कर सकता है।


भोजन पौष्टिक तथा सुपाच्य हो। उसके साथ फल, साग, सलाद आदि का भी प्रयोग हो, यह तो आवश्यक है ही, साथ ही भोजन करने का तरीका क्या हो, इसका भी ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक होता है।


भोजन करते समय बीच-बीच में पानी पीना, जल्दी-जल्दी खाना, खड़े-खड़े खाना, जूता पहनकर खाना, बिना हाथ धोए खाना आदि अनेक ऐसी बातें हैं जो स्वास्थ्य के लिए अहितकर मानी जाती हैं।


पालथी मारकर खाना, धीरे-धीरे चबा-चबाकर खाना तथा भोजन के अन्त में पानी पीना स्वास्थ्यकर होता है। जिस प्रकार अन्य कार्यों के लिए समय निकाला जाता है, उसी प्रकार भोजन के लिए पर्याप्त समय निकालना आवश्यक होता है।