दमा बेदम कर दे जब


दमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें सांस की नली व श्वसन तंत्र में सूजन आ जाती है। इसके संकुचित होने से अत्यन्त तकलीफदेह खांसी, श्वांस कष्ट, कफ, सीने में भारीपन एवं सांस फूलने लगती है।
अस्थमा या दमा की बीमारी श्वसनतंत्र की संवेदनशीलता व कुछ उत्तेजक तत्व के बढ़ने से होती है जिससे श्वसनतंत्र संकुचित हो जाता है। दमा या अस्थमा किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है किंतु पचास प्रतिशत मामलों में मुख्यतः दस वर्ष के कम उम्र के बच्चों में देखने को मिलता है जबकि पुरूषों एवं स्त्रियों में यह बीमारी दो के सापेक्ष में एक को होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विज्ञान तकनीकी एवं मेडिकल साइंस की इतनी तरक्की के बाद भी छाती, फेफड़े व श्वास से संबंधित बीमारियों एवं इससे होने वाली हानि को कम नहीं किया जा सका है। अस्थमा एवं एलर्जी उनमें से ही एक ऐसी बीमारी है जो लगातार बढ़ती जा रही है।
इसका सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है। इसका सीधा प्रभाव फेफड़ों एवं श्वसन तंत्र पर पड़ता है। विश्व में अभी 18 करोड़ से ज्यादा लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। इनमें से करोड़ों ऐसे भी हैं जिन्हें तत्काल निदान व उपचार की आवश्यकता है। इनमें बच्चे अधिक व वयस्क कम हैं। पहले इसे बुजुर्गों की बीमारी एवं ’दमा, दम के साथ जाता है कहा जाता था पर यह अब सबका हो गया है। वर्तमान दौर में बच्चे इससे सर्वाधिक पीड़ित हैं, वहीं स्त्री की तुलना में दोगुने पुरूष इसके रोगी हैं।




यह अब दवाओं, खानपान एवं जीवन-शैली सुधार से नियंत्रित किया जा सकता है। इसकी तीव्रता एवं लगातार दौरों को काबू में किया जा सकता है। इसकी तात्कालिक व तीव्र असरकारक दवाएं भी आने लगी हैं।
दमा दो प्रकार से अटैक करता है। एक्यूट अटैक या एपिसोडिक अस्थमा में अचानक आधी रात को सांस रूकने की परेशानी होती है। सीने में सांय-सांय की आवाज आती है। श्वसन क्रिया बढ़ जाती है। पल्स रेट 100 तक बढ़ जाती है। रोगी ज्यादा से ज्यादा सांस लेता है। क्रोनिक अटैक आने से सीने में खिंचाव महसूस होता है। सांस 25 से 40 बार प्रति मिनट चलने लगती है। कफ ज्यादा निकलने लगता है। मुख्यतः सुबह के समय एवं रात में तकलीफ बढ़ जाती है।


अस्थमा क्या है -
यह अस्थमा या दमा फेफड़ों की बीमारी है जो श्वांस नली को प्रभावित करती है और कुछ पदार्थों के प्रति संवेदनशील हो जाती है। इसमें श्वांस नली सिकुड़ जाती है जिससे फेफड़ों के रक्त को आक्सीजन प्रवाहित करने की क्षमता कम हो जाती है। पर्याप्त आक्सीजन के बिना शरीर के अंग ठीक प्रकार से काम नहीं कर पाते हैं। इससे स्वास्थ्य प्रभावित होता है।



कारण -
यह अस्थमा परिवार के किसी सदस्य को एलर्जी होने या स्वयं एलर्जिक होने से होता है। धूल, धुएं, परागकणों से, सुगंध से एलर्जी या ऐसी जगह पर काम करने गैस, धूल, धुआं होने से इस प्रकार का अस्थमा होता है। यह भाग-दौड़ से, अत्यधिक कफ एवं खांसी से, आनुवंशिक, हड़बड़ी करने पर, गरम होने पर, अति उत्साह या अत्यधिक चिंता व तनाव से भी होता है। अचानक मौसम में बदलाव से, धूम्रपान करने पर होता है। ज्यादातर यह संक्रमण, वायरल या एलर्जी से होता है।


लक्षण -
सांस लेने में कठिनाई होती है। लंबे समय तक खांसी आती है। दौरे के समय गले व सीने मंे जकड़न होता है। श्वास बाहर निकलते समय सीटी की आवाज आती है। थकान अनुभव होती है। व्यायाम या शारीरिक कार्य करते समय जल्दी सांस फूलती है।


बच्चे में अस्थमा की पहचान -
बच्चा ठीक से वाक्य पूरा नहीं कर पाता है। न खा सकता है और न ही रो सकता है। शरीर नीला पड़ने लगता है। पसलियों में सांस लेते समय गड्ढा पड़ने लगता है। सोचने समझने की क्षमता कम हो जाती है। बहुत ज्यादा पसीना आता है। सांस की गति बहुत तेज हो जाती है।


उपचार के लिए दवाइयां -
दमा या अस्थमा के लिए मुख्यतः दो प्रकार की दवाइयां इलाज में दी जाती हैं। एक, तुरंत आराम के लिए जिन्हें रिलीवर कहते हैं। ये सांस की नली को तुरंत फैला देती हंै जिससे सांस लेने में आराम मिल जाता है। दूसरी दवाइयां लंबे समय तक रोकथाम के लिए दी जाती हैं जो श्वांस नली में संक्रमण एवं सूजन को कम करती हैं एवं भविष्य में आने वाले अस्थमा के दौरों को रोकती हैं किंतु इनका असर होने में समय लगता है। साधारण एवं हल्की तीव्रता के अस्थमा का उपचार घर पर ही संभव है। पीड़ित मरीज प्रायः बैठने या सीधी अवस्था में रहने से या सिर नीचा कर तकिये पर रखने से आराम महसूस करता है किंतु तकलीफ ज्यादा होने पर डाक्टर से मिलकर परामर्श एवं दवा-उपचार लेना चाहिए।



रोगी के लिए सावधानियां -
तेज दुर्गंध व परफ्यूम से बचें। ठंडी या गर्म हवा में व्यायाम न करें। मौसम के अचानक परिवर्तन के समय सचेत रहें। धूल, धुआं एवं धूम्रपान से बचें। आइसक्रीम, कोल्डड्रिंक्स व ज्यादा ठंडी चीजें न लें। घर की एवं वहां की वस्तुओं की नियमित सफाई हो और सफाई के समय मरीज पास में न रहे। उसके पास स्प्रे का उपयोग कम हो।
हर महीने डाॅक्टर से जांच करवाएं। अपना निर्धारित इनहेलर हमेशा अपने साथ रखें। योग व श्वास व्यायाम को बढ़ावा दें। डाॅक्टर के कहने पर ही दवा बंद करें या बदलें। पालतू पशु-पक्षी, अगरबत्ती, मच्छर क्वायल, पटाखों के धुएं से दूर रहें। बासी भोजन, तले-भुने, तेज मिर्च-मसाला, तेल-घी, गुड़, केला, खट्टा पदार्थ, नशा, शोर, रात जागरण, तनाव, ज्यादा खाने से बचें। कफ, बादी एवं वायु बनाने वाले पदार्थ न खाएं। गर्म, सुपाच्य भोजन सामान्य मात्रा में करें। सामान्य तापवाला या गुनगुना पानी पिएं।
पपीता, नींबू, अनार फल, अदरक की चाय, मेथी, पालक, आदि भाजी, कच्चा प्याज, लहसुन आदि का उपयोग कर सकते हैं। संयम, नियम व उपयुक्त जीवन-शैली से सब काबू में आ सकता है। दमा के रोगी पर हर मौसम की तीव्रता का प्रभाव पड़ता है किंतु सतर्क रहकर वह दमा के दौरों से बच सकता है।