बच्चे की टेढ़ी टांगे नजर अंदाज न करें

बच्चे की टेढ़ी टांगे
नजर अंदाज न करें



हर मां बाप का सपना होता है कि वे अपने बच्चे को सामान्य रूप से दौड़ता-भागता एवं बढ़ते हुए देखें पर क्या हर मां-बाप का यह सपना पूरा हो पाता है? कहीं आप उनमें से एक तो नहीं हैं, जो अपने बच्चे की टेढ़ी होती टांगों को लेकर परेशान हैं?


यदि आपका बच्चा छः साल से कम आयु का है तो आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। यूं तो प्रत्येक माता-पिता इस बात का विशेष ख्याल रखते हैं कि कहीं उनका बच्चा दूसरे बच्चों की तुलना में मानसिक या शारीरिक रूप से पीछे तो नहीं है। ऐसे में अगर वे अपने बच्चे की टांगों को टेढ़ा या असामान्य देखें तो उनका चिंतित होना बहुत ही सामान्य सी बात है लेकिन बच्चे की इस परेशानी को सही तरह से समझने के लिए इसकी पूरी जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है।


हड्डी रोग विशेषज्ञ, दिल्ली के अनुसार मां के गर्भ से लेकर जन्म तक तथा जन्म से लेकर बड़े होने तक हरेक मानव को एक निश्चित प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। बच्चे के जन्म से लेकर दो साल तक टांगों का वक्राकार होना आम बात है जिसमें बच्चे के खड़े होने या लेटने पर दोनों पंजों के मिलने पर भी घुटनों के बीच में जगह मौजूद होती है। इस अवस्था को डाक्टरी भाषा में ‘फिजियोलोजिकल जैनू वैरम’ अथवा ‘बो लैग्स’ कहा जाता है। इस प्रक्रिया का अगला पड़ाव 1) से 2) साल तक होता है जिसमें टांगें बिल्कुल सीधी हो जाती हैं और बच्चा सामान्य हो जाता है।


4 साल की उम्र तक आते आते यही प्रक्रिया उल्टी हो जाती है और बच्चे के लेटने या खड़े होने पर दोनों घुटनों के मिलाने से पांव की एड़ियों के बीच खाली स्थान बच जाता है व घुटने आपस में टकराते हैं जिसे ‘फिजियोलोजिकल जेनू वैल्गम’ अथवा ‘नौक नीज’ कहते हैं। इसमें चितिंत होने की कोई बात नहीं, अगर यह सब अपने नियमित समय से होता है क्योंकि यह सभी बढ़ने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। धीरे-धीरे 6-7 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते टांगें पूर्णतः सीधी हो जातीे हैं अर्थात सीधे खड़े होने पर दोनों टांगें सीधी हो जाती हैं तथा घुटने व एड़ी सट कर मिलती हैं।


डाॅ. के अनुसार यह प्रक्रिया सामान्य शारीरिक विकास का हिस्सा है तथा अधिकतर बच्चों में पाया जाता है किन्तु अगर आपके बच्चे की टांगें 7 वर्ष की आयु के पश्चात भी टेढ़ी हैं, उनकी विकृति (टेढ़ापन) दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, बच्चे की लम्बाई कम है या फिर टेढ़ापन एक ही पांव में है, इन सभी स्थितियों में से किसी एक की भी मौजूदगी पर माता-पिता को निश्चित रूप से कुशल हड्डीरोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि समय रहते उनका सही इलाज किया जा सके।



ऐसे बच्चों का भविष्य सुधारने हेतु विकलांगता शल्य चिकित्सा विशेषज्ञ डाॅ. शल्या बताते हैं कि यदि समय पर बच्चे का इलाज शुरू कर दिया जाये तो न केवल टांगों को सीधा किया जा सकता है बल्कि भविष्य में होने वाली अनेक परेशानियों से बचा जा सकता है।


कई बार टांगें सीधी करने के लिए आपरेशन भी करना पड़ता है। आपरेशन करने से पहले अनेक बातों का ध्यान रखना पड़ता है-जैसे यदि टांगें बहुत टेढ़ी हैं, हालत ज्यादा बिगड़ी हुई है, टांगों का टेढ़ापन 5 साल की उम्र के बाद हुआ-जिन्हें डाॅ. शल्या बहुत ही अच्छी तरह से परख लेते हैं।
इलाज शुरू करने से पूर्व बीमारी के सही कारण का पता लगाया जा सकता है जिसके लिए टांगों का विशेष एक्स-रे और खून की जांच आदि की जाती है। सही कारण पता लगने पर उसके अनुसार इलाज शुरू किया जाता है। किस मरीज के लिए किस चिकित्सा प्रणाली को इस्तेमाल किया जाए, यह कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कि मरीज की उम्र, टेढ़ा होने का कारण, टेढ़ापन की तीव्रता की गम्भीरता।


वे मरीज जिनमें निदान कम उम्र में हो जाता है, डाॅ. शल्या के अनुसार उन्हें बिना शल्य चिकित्सा का सहारा लिए ही ठीक किया जाता है क्योंकि उनकी हड्डी बढ़ने वाली उम्र होती है। इसके लिए विशेष दवाएं दी जाती हैं तथा विशेष स्पिलिन्ट, ब्रेस तथा जूतों के बदलाव को इस्तेमाल करके, घुटने के दबाव वाले हिस्से से दबाव कम किया जाता है और घुटने को सही स्थिति में लम्बे समय तक रखा जाता है ताकि उस तकनीक से हड्डी सीधी हो सके। इन सबके साथ-साथ फिजियोथेरेपी का भी बहुत महत्व है परन्तु जो मरीज अधिक उम्र के होते हैं, उनमें विशेष शल्य चिकित्सा का उपयोग किया जाता है।