वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य रक्षा


गीता शर्मा
सारा जीव-जगत जब ग्रीष्म की भयानक तपिश से तप रहा होता है तब आती है बरसात। वर्षा की पहली फुहार से सभी जीव जन्तु राहत महसूस करते हैं किंतु अचानक आये बदलाव से विशेषतः मनुष्य का शरीर रोग-ग्रस्त हो जाता है। ऐसे समय में उचित आहार-विहार तथा थोड़े से संयम द्वारा स्वस्थ और प्रसन्न रहा जा सकता है।
वर्षा ऋतु में पानी गंदा हो जाता है जिसके कारण मिट्टी के कीटाणु पानी के साथ सीधे पेट में जा पहुंचते हैं और अनेकानेक रोगों को जन्म देते हैं।
पानी के गंदा होने से खाद्य पदार्थों में अम्लता भी बढ़ जाती है और साथ में पित्त दूषित हो जाता है। इसी प्रकार भारी पानी और गंदगी के कारण भी ‘कफ‘ दूषित हो जाता है, फलस्वरूप रक्त में विकार पैदा हो जाता है और शरीर में मल इकट्ठा होने लगता है। अगर इस समय मल-निष्कासन नहीं हो पाता तो आदमी शीघ्र बीमार पड़ जाता है। आकाश दिन रात बादलों से ढका रहता है। जमीन भी गीली होती है तथा हवा में भी नमी होती है, इस कारण जठराग्नि मंद पड़ जाती है। खाया हुआ आहार ठीक से पचता नहीं जिससे पेट की बीमारियां आ घेरती हैं, अतः खानपान में सावधानी बरतनी चाहिए।
वर्षा ऋतु में हल्का-सादा भोजन करना चाहिए। अधिक मात्रा में और बार-बार का भोजन हानिकारक है। इसी प्रकार अधिक चरपरा मसालेदार खाना भी घातक हो सकता है।
जिन्हें उपलब्ध हो, वे पुराना जौ, गेहूं व साठी चावल का सेवन करें। चावल का चिउड़ा (पोहा) का नाश्ता लाभकारी है। छिलके वाली दाल, विशेष कर मूंग दाल का सेवन करना चाहिए।
दूध, दही और घी के स्थान पर मठा (छाछ) का प्रयोग करना चाहिए। तिल और तिल का तेल, अदरक, लहसुन, हरी मिर्च, नींबू आदि को भोजन में अवश्य सम्मिलित करें।
नींबू पानी, नमक और चीनी के साथ भोजन से आधा-एक घंटा पहले पीना चाहिए। भोजनोपरांत न पियें। इसी तरह छाछ भोजन के बाद पियंे।
वर्षा-काल में भिण्डी, परवल, बैंगन, कुम्हड़ा, लौकी, तोरई, पालक, करेला जैसी सब्जियां वात पित्तादि नाशक होने से लाभकारी होती हैं।
फलों में आम, जामुन सर्वश्रेष्ठ हैं।
वर्षा ऋतु में पानी उबालकर पीना चाहिए क्योंकि पानी में इन दिनों मिट्टी के कण और जीवाणु मिले रहते हैं।
मलेरिया और टाइफाइड, अतिसार, पतले दस्त और दाद-खाज जैसे त्वचा रोगों से बचाव के लिए त्रिफला चूर्ण या बाल हरी (हरड़) को चीनी के साथ सप्ताह में दो तीन बार लेना चाहिए, साथ ही पेट संबंधी विकार जैसे गैस, दर्द या भारीपन के लिए कुमारी आसव, शंख भस्म, अविपत्तिकर चूर्ण जैसी आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग लाभकारी होता है।
वर्षा-काल में अधिक सहवास से बचें। कठोर व्यायाम, अधिक चटपटा भोजन, दिन में सोना और अधिक जागरण तथा श्रम हानिकारक है। उचित आहार-विहार और सावधानी द्वारा वर्षाऋतु का आनंद उठाया जा सकता है।