समय पूर्व प्रसव: जानकारी जरूरी


गीता शर्मा
अनेक कारणों से आजकल समय पूर्व प्रसव की स्थिति आ रही है। ऐसे असमय जन्मे शिशुओं की उचित देखभाल एवं उसके संबंध में संपूर्ण जानकारी होना शिशु की मां या अन्य परिजनों के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। शिशु का समय से पहले जन्म होना मां के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। कई कारणों से समय पूर्व प्रसव एवं शिशु के जन्म की संभावना बढ़ जाती है।
कारण - गर्भधारण के उपरान्त मां के गर्भ में शिशु के रहने की सामान्य अवधि 9 माह सात दिन या 280 दिनों के लगभग मानी जाती है। इस अवधि के बाद होने वाले प्रसव को पूर्णकालिक प्रसव कहा जाता है। पूर्णकालिक समय के उपरान्त जन्म लेने वाला बच्चा पूर्ण परिपक्व होता है वह पूर्ण विकसित होता है जबकि असमय प्रसव या अकाल प्रसव से जन्मा बच्चा अल्पविकसित होता है।
सामान्य अनीमिया अर्थात् मां के शरीर में खून की मात्रा की कमी से समय पूर्व प्रसव की संभावना बढ़ जाती है। मां मंे खून की कमी के अलावा उच्च रक्तचाप, शक्कर की बीमारी, थायराइड की बीमारी, सिकलिंग, गर्भ के झिल्ली में ज्यादा पानी होने से भी प्री मैच्योर डिलीवरी की नौबत आती है।
किशोरावस्था या प्रौढ़ावस्था में गर्भधारण करने से यह स्थिति आती है। ज्यादा बच्चों के जन्म के बाद भी यह स्थिति आती है।
गर्भधारण के सातवें मास को खतरों से भरा माना जाता है। इस दौरान कुछ तेज दवाओं का प्रभाव या शारीरिक संबंध बनाना भी खतरनाक होता है।
गर्भाशय की बनावट में गड़बड़ी, गर्भावस्था के दौरान मूत्र नली में संक्रमण के कारण भी ऐसा होता है।
हार्मोनल दबाव या प्लेसेंटा में रक्त स्राव होने पर भी यह स्थिति आती है।
गर्भाशय का मुख ढीला होकर खुल जाने से भी ऐसा होता है।
गर्भ में एक से अधिक शिशु विकसित होने पर भी ऐसा होता है।


शिशु की स्थिति -
सामान्यतः सात-आठ या नौ माह में जन्मे शिशु का औसत वजन क्रमशः डेढ़, दो या ढाई किलोग्राम का होता है जबकि पूर्ण विकसित शिशु तीन से साढ़े तीन किलो का होना चाहिए। पूर्णकालिक अवधि में जन्मे शिशु की लंबाई लगभग बीस से.मी. होनी चाहिए। इससे कम लंबाई का शिशु उसके अविकसित होने का द्योतक माना जाता है।
अविकसित शिशु का सिर शेष शरीर की तुलना में बड़ा होता है। ऐसे शिशु की हड्डियां निकली हुई दिखाई देती हंै। इसके शरीर में झुर्रियां होती हैं। त्वचा कुछ लाल दिखाई देती है। उसकी त्वचा पर जन्म के समय बाल मिलते हैं। ऐसा शिशु सुस्त पड़ा रहता है। उसकी आवाज अत्यंत क्षीण या पतली होती है।
ऐसे अल्पविकसित शिशु को दूध पिलाने से उसका शरीर नीला पड़ जाता है। इस अवस्था को सायलोसिस कहा जाता है। ऐसे शिशु का हृदय पूर्ण विकसित होता है किंतु उसकी क्रिया अत्यंत मंद होती है। उसमें रक्त कम किंतु हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ी हुई मिलती है। रक्त मंे अपुष्ट कोशिकाओं की उपस्थिति एवं उसमें टूट-फूट से शिशु को अनीमिया हो जाता है।
अल्पविकसित एवं अविकसित शिशु के द्वारा दुग्धपान या तरल पदार्थ कम लने के कारण उसे कम मात्रा में पेशाब होता है। इसमें अल्बूमिन की मात्रा पायी जाती है। इसकी बौद्धिक क्षमता में कमी एवं आगे मानसिक विकास मंद होने की आशंका बनी रहती है।


विशेष -
हमारे देश में कुपोषण एवं खून की कमी के अलावा अल्पायु में विवाह के कारण समय पूर्व प्रसव की स्थिति आती है। यहां कुपोषण को लेकर चिंताजनक स्थिति है। यहां की महिला एवं बच्चे विश्व में सर्वाधिक कुपोषित हैं।
समय पूर्व जन्मे बच्चे को कई तरह की बीमारियां होती हैं किंतु उचित देखभाल कर सभी स्थिति से उबरा जा सकता है एवं नवजात शिशु के जीवन को अंधकारमय होने से बचाया जा सकता है।