लैप्रोस्कोपी से पेट को दर्द दिये बगैर दर्द से छुटकारा

पेट दर्द की परिणति कई बार खतरनाक या जानलेवा स्थितियों के रूप में होती है। कई बार तो अपच, गैस एवं अम्लता जैसे मामूली कारण पेट दर्द के सबब बनते हैं लेकिन कई बार पथरी, कोलोन कैंसर, एपेंडिसाइटिस और अल्सर जैसी खतरनाक स्थितियां पेट दर्द का कारण बनती हैं। कई बार तो इन खतरनाक स्थितियों को दूर करने के लिये अधिक चीरफाड़ करने वाले आॅपरेशनों तक का सहारा लेना पड़ता था लेकिन आज लैप्रोस्कोपी एवं माइक्रो लैप्रोस्कोपी की मदद से इन समस्याओं को आसानी से दूर किया जा सकता है।
लैप्रोस्कोपी एवं माइक्रो लैप्रोस्कोपी तकनीक की मदद से पित्त की थैली, बच्चेदानी, आंतों और किडनी जैसे पेट के विभिन्न अंगों की समस्याओं को दूर किया जा सकता है।



पेट दर्द की असहनीय पीड़ा से शायद ही कोई व्यक्ति अनजान होगा। आम तौर पर पेट दर्द के अनेकानेक कारण होते हैं। अकसर पेट दर्द की तीव्रता का संबंध बीमारी की गंभीरता से नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर कई बार तेज पेट दर्द अपच, गैस, अम्लता और आंतों में एंेठन जैसे मामूली कारणों से हो सकता हैं जबकि मामूली पेट दर्द कोलोन कैंसर अथवा एपेंडिसाइटिस और अल्सर जैसी जानलेवा स्थितियों का सूचक हो सकता है। लेकिन इसके बावजूद अकसर देखा गया है कि लोग पेट दर्द होने पर कोई दर्दनिवारक दवाई खा लेते हैं और पेट दर्द ठीक होने पर वे निश्चिंत हो जाते हैं।



पेट दर्द जिन कारणों से हो सकते हैं उनमें खाद्य विषाक्तता, संक्रमण, अल्सर, मासिक स्राव, अंडोत्सर्ग, हर्निया, उपापचय में गड़बड़ियां, एपेंडिसाइटिस, पेल्विक संक्रमण, इंडोमेट्रियोसिस, इरिटिबल बाउल सिंड्रोम, पेट में रक्त स्राव, कैंसर, पथरी, गांठ या ट्यूमर के अलावा पित्त नली, वृक्क (रीनल), मूत्राशय, जननागों और मूत्रमार्ग, रक्त वाहिनियों और अग्न्याशय की बीमारियां शामिल हैं। दरअसल पेट दर्द के इतने कारण हैं जिन्हें गिनाना संभव नहीं होता है। पेट दर्द के कारणों को जानने में पेट दर्द शुरू होने के समय, दर्द की अवधि, दर्द की जगह, दर्द की प्रकृति, दर्द की तीव्रता आदि महत्वपूर्ण होते हैं।



पेट दर्द के उपचार के लिये उसके कारण की सही-सही पहचान जरूरी होती है। हालांकि पेट दर्द के कारणों की जांच में अल्ट्रासाउंड एवं इंडोस्कोपी जैसी जांच तकनीकों एवं उपकरणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन लैप्रोस्कोपी एवं माइक्रो लैप्रोस्कोपी तकनीक के विकास के बाद पेट दर्द के कारणों की सही-सही पहचान एवं पेट दर्द के कारगर उपचार के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात हुआ है। लैप्रोस्कोपी एवं माइक्रो लैप्रोस्कोपी की मदद से न केवल पेट दर्द के कारणों का सही-सही पता चलता है बल्कि कई मामलों में मरीज को अधिक कष्ट दिये बगैर पेट दर्द के कारणों को दूर भी किया जा सकता है।



लैप्रोस्कोपी के तहत् अत्यंत पतले एवं टेलीस्कोपनुमा उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। लैप्रोस्कोपी एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से पेट के किसी भी भाग तक सीधे पहुंच कर पेट के भीतर जांच-पड़ताल की जा सकती है। अगर पेट में कोई गांठ या पथरी है तो उसकी जांच की जा सकती है और आगे की जांच के लिये उसके ऊतक लिये जा सकते हैं।



लैप्रोस्कोपी आधारित सर्जरी के विकास से पेट के चीर-फाड़ की आवश्यकता समाप्त हो गयी है। लैप्रोस्कोपी सर्जरी के तहत् किसी भी मांसपेशी को काटे या मांसपेशियों में चीर-फाड़ किये बगैर उदर के निचले हिस्से की त्वचा में मात्र आधे इंच का चीरा लगाकर मांसपेशियों के बीच अत्यंत पतली ट्यूब (कैनुला) प्रवेश करायी जाती है। इस ट्यूब के जरिये लैप्रोस्कोप डाला जाता है। यह लैप्रोस्कोप अत्यंत सूक्ष्म कैमरे से जुड़ा होता है। फाइबर आप्टिक तंतु के जरिये भीतर की तस्वीरों को परिवर्द्धित आकार में उससे जुड़े टेलीविजन के माॅनिटर पर देखा जा सकता है। टेलीविजन माॅनिटर पर तस्वीरों को देखते हुये इस पतली ट्यूब के रास्ते आधे इंच के व्यास वाली एक और पतली ट्यूब प्रवेश करायी जाती है। इससे पित्त की थैली के सभी विकार, अपेंडिक्स तथा सभी प्रकार के हर्निया का इलाज सफलतापूर्वक किया जा सकता है। डा. अनिल जैन बताते हैं कि लैप्रोस्कोपी आॅपरेशन के बाद मरीज शीघ्र काम-काज करने लायक हो जाता है और उसे अधिक समय तक अस्पताल में नहीं रहना पड़ता है।



अमरीका में किये गये अध्ययनों से पता चलता है कि परम्परागत आॅपरेशन के बाद मरीज को करीब 48 दिन आराम करने की जरूरत होती है जबकि नयी तकनीक से आॅपरेशन करने के बाद करीब नौ दिन का आराम पर्याप्त होता है।



मौजूदा समय में लैप्रोस्कोपी का अधिक विकसित रूप माइक्रो लैप्रोस्कोपी के रूप में सामने आया है। भारत में यह तकनीक एआईएमएस सहित कुछ गिने-चुने चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध हो गयी है। इस आॅपरेशन में मरीज को उतना ही कष्ट होता है मानो उसे सुई चुभोई जा रही है। परम्परागत माइक्रोस्कोप आॅपरेशन के लिये 11 मिली मीटर व्यास का चीरा लगाने की जरूरत होती है जबकि माइक्रो लैप्रोस्कोपी आॅपरेशन के तहत् मात्र पांच मिली मीटर व्यास का चीरा लगाना ही पर्याप्त होता है। यही नहीं माइक्रो लैप्रोस्कोपी आॅपरेशन के बाद टांके को हटाने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तरह दूर-दराज के मरीजों को दोबारा सर्जन के पास आने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे मरीज स्थानीय चिकित्सक से ही चेकअप आदि करवा सकते हैं। लैप्रोस्कोपी एवं माइक्रो लैप्रोस्कोपी तकनीक की मदद से हर्निया के अलावा पित्त की थैली, बच्चेदानी, आंतों और किडनी जैसे पेट के सभी अंगों के आॅपरेशन किये जा सकते हैं।