दृष्टिक्षीणता नाशक योग आसन


प्रवीण शर्मा
कहा जाता है कि ‘आंखें’ हैं तो जहान है। बिन आंखों की ज्योति के सारा संसार ही अंधकारमय दिखाई देता है। प्रकृति की सुन्दरता से साक्षात्कार कराने का श्रेय इन्हीं आंखों को जाता है। योगशास्त्रा के अनुसार आंखों का बहुत बड़ा महत्त्व है क्योंकि ये आंखें ही शरीर में स्थित भौतिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
आंखों का निर्माण वस्तुतः वायु, अग्नि और जल के अपूर्व संयोग से हुआ है। इसका सीधा संबंध सूर्य ग्रंथि अर्थात् पैंक्रियाज से होता है। जब तक सूर्य ग्रंथि दोषमुक्त रहती है, तभी तक आंख की दृष्टि शक्ति स्वस्थ रहती है। इसका कारण यह है कि पैंक्रियाज की दीवारों में एक प्रकार का अंतर्मुखी रस सतत् प्रवाहित होता रहता है। यही रस भोजन को पचाने का कार्य भी करता है। इसी रस की सहायता से यकृत (लिवर) शर्करा को एकत्रित रखने में सक्षम होता है।
पंैक्रियाज अर्थात् सूर्य ग्रंथि जहां एक ओर यकृत की क्रियाओं को अच्छी तरह सम्पादित करनेे में मदद करती है, वहीं दूसरी ओर आंखों में स्थित कार्निया एवं अक्षिपट (रेटिना) नामक भागों को दिखाने वाले विषय वस्तुओं की आकृति एवं आकार-प्रकार ग्रहण करने एवं प्रतिबिम्बित करने की शक्ति प्रदान करती है।
रेटिना जिस ऊर्जा से देखने की शक्ति प्राप्त करती है, उसकी आपूर्ति पैंक्रियाज द्वारा ही की जाती है। स्वाभाविक ही है कि यदि सूर्य-ग्रंथि अस्वस्थ रहेगी तो लिवर के साथ-साथ आंख में भी दोष उत्पन्न होता ही है। परीक्षणों द्वारा पैंक्रियाज संबंधी दोषों को ज्ञात किया जा सकता है। दृष्टिहीनता के दोषों का पता पाचन क्रिया के दोषों से भी ज्ञात किया जा सकता है। भूख, प्यास, नींद, थकावट और आलस्य की स्थिति में दृष्टि शक्ति का हृास होता चला जाता है।
यौगिक दिनचर्या को अपनाकर दृष्टिहीनता पर काबू पाया जा सकता है। यूं तो हर व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्थिति भिन्न-भिन्न होती है, फिर भी यौगिक जीवनचर्या में कुछ ऐसे अभ्यास हैं जिनके नियमित अभ्यास से दृष्टिदोष को सुधारा जा सकता है।
दृष्टि एवं आंखों के लिए सर्वोपकारक आसन का नाम सिंहासन है। सिंहासन के उपरांत शीर्षासन एवं सर्वांगासन जैसे आसन परोक्ष रूप से आंखों को लाभ पहुंचाते हैं।


सिंहासन -
सिंहासन चैरासी आसनों में से एक है। इसे ‘मैश्वासन’ भी कहा जाता है। इस आसन की मुखमुद्रा वज्रासन और मद्रासन में भी की जा सकती है।


पद्धति -
दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पीछे की ओर ले जाइए और फिर उनकी एड़ियों पर बैठ जाइए। एड़ियां नितम्ब के दोनों ओर रहनी चाहिएं। दोनों घुटने एक-दूसरे से लगभग छह इंच दूर रखिए। दाएं हाथ के पंजे को दाएं घुटने पर और बाएं हाथ के पंजे को बाएं घुटने पर रखिए। दोनों नथुनों और मुख से थोड़ी-थोड़ी सांस छोड़ते जाइए और साथ ही जीभ को मुंह से बाहर निकालिए। जीभ निकालने की क्रिया पूरी होने के साथ ही सांस भी पूरी तरह बाहर निकल जानी चाहिए। अब सांस लेना बन्द कर दीजिए।
अपनी कमर को सीधी रखिए और मुख के सारे स्नायुओं को खींचकर आंखों को पूरी तरह से इस ढंग से खोलिए कि चेहरा पूरी तरह डरावना लगे। अब सामने की ओर देखिए। इस स्थिति में आठ सेकेन्ड तक स्थिर रहिए। आरम्भ में इस क्रिया को एक सप्ताह तक कीजिए। इस क्रिया को दो बार प्रतिदिन से शुरू करके धीरे-धीरे चार बार प्रतिदिन तक बढ़ाते चले जाइए। इसके साथ ही आंखों के निम्नलिखित व्यायाम भी करें।


आंख दबाव -
आंखों के आस-पास के स्नायुओं और पलकों के स्नायुओं द्वारा 5-10 सेकेण्ड तक प्रबल दबाव डालिए। अंत में स्नायुओं को शिथिल छोड़ दीजिए और आंखों को यथासंभव ढीला कर दीजिए। इस क्रिया का पुनरावर्तन दस बार कीजिए।


कभी नजदीक और कभी दूर देखना -
घर के अंदर खिड़की के पास या बाल्कनी में खड़े रहिए। दाएं हाथ की प्रथम उंगली नाक से डेढ़-दो इंच दूर स्थिर रखिए। इस उंगली को तीन सेकेण्ड तक देखिए। इस क्रिया का पुनरावर्तन तीस बार कीजिए। आंखों को विविध दिशाओं में घुमाते रहिए।


आंखों को विविध दिशाओं में घुमाना -
िआंखों को दाईं ओर अधिक से अधिक घुमाइए। फिर उन्हें बाईं ओर अधिक से अधिक घुमाइए। इस क्रिया का पुनरावर्तन दस बार कीजिए।
िआंखों को यथाशक्ति ऊपर की ओर चढ़ाएं, फिर उन्हें अधिक से अधिक नीचे की ओर ले आइए। इस क्रिया का पुनरावर्तन दस बार तक कीजिए।
िआंखों को बाईं ओर के ऊपर वाले कोने की तरफ ले जाइए। इसके बाद उन्हें दाई ओर के नीचे वाले कोने की तरफ ले जाइए। इस प्रकार से दस बार कीजिए।
िआंखों को दाईं ओर के ऊपर वाले कोने की तरफ ले जाइए, फिर उन्हें बाई ओर के नीचे वाले कोने की तरफ ले जाइए। इस प्रकार दस बार कीजिए।
िआंखों को पहले घड़ी की सुइयों की गति की दिशा में और फिर घड़ी की सुइयों की गति से विपरीत दिशा में दस-दस बार चक्राकार में घुमाइए।
लाभ -
इस आसन एवं विधियों से दृष्टि की क्षीणता नष्ट होती है तथा आंखों की सुंदरता बढ़ती है।
िस्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए ‘सिंहासन’ अत्यन्त उपयोगी आसन है।
िश्वसनतंत्रा और स्वरतंत्रा पर यह आसन बड़ा प्रभाव डालता है।
िगले की आवाज की तकलीफ हो या काकल सूज गया हो तो यह आसन औषधि का काम करता है।
िइस आसन से पेट के तमाम रोग दूर होते हैं।
ियह आसन गूंगापन मिटाता है तथा आंख, कान, त्वचा को लाभ पहुंचाता है।
िइस आसन से मुख की सुन्दरता और कान्ति में वृद्धि होती है।